विंध्याचल परियोजना में 12 वर्ष का प्रवास, बहुत घटनापूर्ण था और निराशा भी बहुत बार हुई इस दौरान। एक पदोन्नति समय पर मिल गई, जिससे भद्रजनों की भृकुटियां तन गईं, हिंदी अधिकारी और समय पर पदोन्नति, इसके बाद उन्होंने भरपूर कोशिश की कि कोई पदोन्नति समय पर न मिल पाए। कुछ बौने सीढ़ियों पर काफी ऊपर चढ़ चुके थे इस बीच, स्वतंत्र कुमार जैसे।
खैर, एक महत्वपूर्ण घटना जो छूटी जा रही थी, अभी बता दूं, मेरी मां जो अधिकतम समय दिल्ली में ही रहीं, उनका अंतिम समय आ गया था। उस समय मोबाइल फोन तो नहीं थे हमारे पास, शायद प्रचलन में भी नहीं थे। विंध्यनगर, मध्य प्रदेश के सीधी जिले में, टेलीफोन की स्थिति भी ऐसी थी उस समय कि बड़ी मुश्किल से घंटी बजती थी। मेरे संबंधी, जिनके नज़दीक मेरी मां रहती थीं, उन्होंने टेलीग्राम भेजा ‘मदर सीरियस, कम सून’। यह टेलीग्राम पाकर मैं तुरंत दिल्ली गया। मालूम हुआ कि मां की मृत्यु हुए एक सप्ताह बीत चुका था। वहाँ किसी को यह विश्वास दिलाना मुश्किल था कि टेलीग्राम मुझे एक सप्ताह के बाद मिला है, और जो उन्होंने मृत्यु होने पर भेजा था, वह मेरे वहाँ से चलने तक नहीं मिला था।
दरअसल, टेलीग्राम जो बाहर से आते थे, वे हमारे तहसील नगर ‘वैढ़न’ में आते थे और वहाँ से वे लोग कब, उसको चिट्ठी की तरह आगे भेजेंगे, यह पूरी तरह उनकी कृपा पर निर्भर होता था। अब तो खैर ‘टेलीग्राम’ नाम की यह बला पूरी तरह समाप्त ही हो चुकी है।
मेरी मां को बहुत भरोसा था कि मैं उनके अंतिम समय में तो उनके पास रहूंगा। मेरी भाभी (वकील साहब की पत्नी) ने मेरी मां से कहा, ‘बुआ किशन तो नहीं आया!’, तब शायद अपने विश्वास से लड़ते हुए मां ने कहा, ‘क्या करूं नहीं आया तो?’
अब अगली बात पर चलते हैं। एक बार फिर कह दूं कि मैं राज कपूर जी का और मुकेश जी का परम भक्त हूँ। मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मुकेश जी शास्त्रीय संगीत में पारंगत नहीं थे। वैसे इसका सही उत्तर कल्याण जी ने किसी व्यक्ति को दिया था, जो मुकेश जी को देखकर उनसे बोला था कि देखो ये इतनी महंगी गाड़ी में घूमते हैं और मैं जो शास्त्रीय संगीत में निपुण हूँ, मेरी कोई पहचान नहीं है।
कल्याण जी ने उससे कहा कि आप ‘चंदन सा बदन’ उनके जैसा गाकर दिखा दो, मैं अगला गीत आपको दे दूंगा। जाहिर है उन सज्जन के लिए ऐसा करना संभव नहीं था।
खैयाम साहब ने मुकेश जी के लिए एक प्रोग्राम में कहा था- ‘तू पुकारे तो चमक उठती हैं, आंखें सबकी, तेरी सूरत भी है शामिल, तेरी आवाज़ में यार’।
जिस समय मुकेश जी जीवित थे और कार्यक्रमों में गाते थे, उस समय तो मैं ऐसी स्थिति में नहीं रहा कि उनका कार्यक्रम करा सकूं, लेकिन एनटीपीसी में आने के बाद, जब मुझको कार्यक्रमों के आयोजन से जुड़ने का मौका मिला, तब से जब भी ऐसा हुआ कि कोई बड़े स्तर का संगीत का कार्यक्रम आयोजित करने की बात हुई, तब हमेशा मेरे मन में जो पहला नाम आता था, वह होता था- नितिन मुकेश जी का।
नितिन जी ने खुद भी कुछ बहुत अच्छे गीत गाए हैं फिल्मों में, जैसे एक गीत जो मुझे बहुत प्रिय है, वह है- ‘सो गया ये जहाँ, सो गया आस्मां, सो गई हैं सारी मंज़िलें, सो गया है रस्ता’। और भी अनेक गीत हैं, लेकिन जो स्थान मुकेश जी का है, फिल्म-संगीत प्रेमियों के दिल में, उसको छूना तो किसी और के लिए बहुत मुश्किल है।
नितिन जी की बड़ी विशेषता यह है कि वे अपने कार्यक्रमों के माध्यम से मुकेश जी के उस युग को फिर से जीवंत कर देते हैं। एक बार जब वे मुकेश जी के गीत गाना प्रारंभ करते हैं, तब पता ही नहीं चलता कि कब रात के प्रहर बदलते चले जाते हैं।
जैसा मैंने कहा, जब भी संगीत के बड़े कार्यक्रम की बात चलती, मेरे मुह से नितिन मुकेश जी का नाम निकलता था, कई बार मेरा ये स्वर बड़ी आवाज़ों के बीच दब गया, लेकिन आखिर वह समय आ ही गया जब यह आयोजन एक हक़ीकत का रूप ले सका।
मुकेश जी से जो लोग मिले हैं, उन्होंने अपने संस्मरणों में कहा है कि वैसा सरल हृदय और उदार व्यक्ति उन्होंने दूसरा नहीं देखा, और जो महसूस कर सकते हैं, वे कहते हैं कि यह सज्जनता उनकी आवाज़ में झलकती है, जो सीधे दिल से निकलती है और दिल में उतर जाती है।
यह भी सच्चाई है कि जब तक मुकेश जी जीवित थे, तब तक किसी पुरुष गायक को इतने फिल्मफेयर एवार्ड नहीं मिले थे, जितने मुकेश जी को मिले थे। हालांकि मुकेश जी ने हीरो बनने की धुन में बहुत समय तक फिल्मों में गाने नहीं गाए थे। उनके गाए गीतों की संख्या रफी साहब और किशोर कुमार जी से बहुत कम है, लेकिन जब अमर गीतों की बात आती है, तब कहानी कुछ और ही होती है।
अंततः नितिन मुकेश जी का कार्यक्रम हमने आयोजित किया, उसका पूरा विवरण अगले ब्लॉग में दूंगा, फिलहाल मुकेश जी की स्मृति में उनका गाया एक भजन यहाँ दे रहा हूँ-
सुर की गति मैं क्या जानूं
एक भजन करना जानूं।
अर्थ भजन का भी अति गहरा
उसको भी मैं क्या जानूं,
प्रभु,प्रभु,प्रभु जपना जानूं मैं,
अंखियन जल भरना जानूं।
गुण गाए प्रभु न्याय न छोड़ें
फिर क्यों तुम गुण गाते हो,
मैं बोला मैं प्रेम दिवाना
इतनी बातें क्या जानूं।
नमस्कार।
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