42. इस धरती से उस अम्बर तक,दो ही चीज़ गज़ब की हैं, एक तो तेरा भोलापन है,एक मेरा दीवानापन।

मैंने लखनऊ प्रवास का ज्यादा लंबा ज़िक्र नहीं किया और ऊंचाहार के सात वर्षों को तो लगभग छोड़ ही दिया, क्योंकि मुझे लगा कि जो कुछ वहाँ हुआ, वह पहले भी हो चुका था। राजनीति की कोई कितनी बात करेगा!

ऊंचाहार में भी मुझे भरपूर प्यार मिला, कवि सम्मेलनों के आयोजन, पहले की तरह नियमित रूप से होते रहे। जैसा मैंने पहले भी अनेक बार उल्लेख किया है, कवि सम्मेलन में शिष्ट हास्य भी मैंने समुचित मात्रा में रखने की हमेशा कोशिश की है, लेकिन मेरे प्रिय रहे हैं गीत कवि, जैसे- नीरज, सोम ठाकुर, किशन सरोज आदि, भारत भूषण जी का मंचों पर आना तो उस समय तक लगभग बंद हो गया था।

एक बात मैंने ऊंचाहार में रहते हुए नोट की, कि नीरज, सोम ठाकुर, किशन सरोज जैसे महान गीतकारों को लोग सुन भर लेते हैं, कोई प्रतिक्रिया नहीं, कोई उत्साह नहीं, जैसे हास्य कविता को सुनकर होता है। मुझे इससे पीड़ा होती थी। शायद वहाँ का श्रोता समुदाय अधिक युवा था। जो भी कारण हो, मुझे यह ठीक नहीं लगता था।

ऐसे में, मैं मानता हूँ कि यह अन्याय होगा कि मैं डॉ. कुमार विश्वास का ज़िक्र न करूं। मुझे कुछ ऐसा लगा कि जिस प्रकार राज कपूर ने, मेरा नाम जोकर के अपेक्षित सफलता प्राप्त न करने पर, बॉबी बनाकर यह चुनौती दी थी कि इसको फेल करके दिखाओ, उसी प्रकार हमने डॉ. कुमार विश्वास को अपने कवि सम्मेलनों का हिस्सा बनाकर, श्रोताओं को यह चुनौती दे डाली और हम इसमें पूरी तरह सफल हुए थे।

मैं यह मानता हूँ कि गीतों के प्रति डॉ. कुमार विश्वास के समर्पण में कोई कमी नहीं है। उन्होंने भी बहुत संघर्ष किया है। शुरू में जब वे सीधे गीत पढ़ने के लिए मंच पर जाते थे, तब कुछ स्थापित गीतकारों ने उनको आगे नहीं बढ़ने दिया।

बाद में डॉ. कुमार विश्वास ने मंच संचालन में अपनी वाक-पटुता और जो कुछ भी मसाला संचालन के लिए आवश्यक हो उसका प्रयोग करके, अपनी ऐसी जगह बनाई कि मंच पर उनका होना, आयोजन की सफलता की गारंटी बन गया।

डॉ. कुमार विश्वास हमारे आयोजनों में तीन बार ऊंचाहार आए और उनके सहयोग से हमने ऐसे अनेक कवि-शायरों को भी सुनने का अवसर प्राप्त किया, जिनसे मेरा संपर्क नहीं था और यह भी बात है कि भरपूर हास-परिहास के बाद वो ऐसा वातावरण बनाते हैं, इस प्रकार प्रस्तुत करते हैं कवियों को, कि लोग मधुर गीतों, रचनाओं को भी पूरे मन से सुनते हैं।

एक और बात कि हमने तीन बार उनको बुलाया, पहली बार उन्होंने कुछ मानदेय लिया, अगली बार उसका दो-गुना, और तीसरी बार तीन गुना। आज जितनी राशि वो लेते हैं, उसको देखते हुए, परियोजनाओं में उनको बुलाना बहुत कठिन है। मुझे खुशी है इस बात की, कि कोई गीत कवि सुरेंद्र शर्मा जैसे लोगों को टक्कर दे रहा है, जो कवि न होते हुए भी बहुत मोटी रकम लेते हैं।

डॉ. कुमार विश्वास के संचालन में जहाँ हमने ज़नाब मुनव्वर राना जी को दो-तीन बार सुना, ओम प्रकाश आदित्य जी भी उनके द्वारा संचालित आयोजन में आए थे, वहीं कुछ ऐसे प्रतिभावान कवि-शायर भी उनके माध्यम से हमारे आयोजनों में आए, जिनसे हमारा कोई संपर्क नहीं था। मेरे खयाल में, कम से कम ऊंचाहार में तो डॉ. कुमार विश्वास द्वारा संचालित ये तीन कवि सम्मेलन सर्वश्रेष्ठ थे।

डॉ. कुमार विश्वास आज देश-विदेश के श्रोताओं के दिलों पर राज करते हैं, उनकी कुछ रचनाओं की बानगी प्रस्तुत है, इनमें मैंने जान-बूझकर उनके सर्वाधिक लोकप्रिय मुक्तक शामिल नहीं किए हैं।

 

वो जिसका तीर चुपके से, जिगर के पार होता है,

वो कोई गैर क्या, अपना ही रिश्तेदार होता है,

किसी से अपने दिल की बात न कहना तू भूले से,

यहाँ तो खत भी थोड़ी देर में अखबार होता है।

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कोई खामोश है इतना, बहाने भूल आया हूँ,

किसी के इक तरन्नुम में, तराने भूल आया हूँ,

मेरी अब राह मत तकना कभी ऐ आस्मां वालों,

मैं इक चिड़िया की आंखों में उड़ानें भूल आया हूँ।

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जो धरती से अम्बर जोड़े , उसका नाम मोहब्बत है ,
जो शीशे से पत्थर तोड़े , उसका नाम मोहब्बत है ,
कतरा कतरा सागर तक तो ,जाती है हर उम्र मगर ,
बहता दरिया वापस मोड़े , उसका नाम मोहब्बत है ।

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बस्ती बस्ती घोर उदासी पर्वत पर्वत खालीपन,
मन हीरा बेमोल बिक गया घिस घिस रीता तनचंदन,
इस धरती से उस अम्बर तक दो ही चीज़ गज़ब की हैं,
एक तो तेरा भोलापन है एक मेरा दीवानापन।

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बहुत बिखरा बहुत टूटा थपेड़े सह नहीं पाया,
हवाओं के इशारों पर मगर मैं बह नहीं पाया,
अधूरा अनसुना ही रह गया यूं प्यार का किस्सा,
कभी तुम सुन नहीं पायी, कभी मैं कह नहीं पाया।

आज का ब्लॉग डॉ. कुमार विश्वास को समर्पित है।

नमस्कार।

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