मैंने पिछले 42 दिनों में, अपने बचपन से लेकर वर्ष 2010 तक, जबकि मेरे सेवाकाल का समापन एनटीपीसी ऊंचाहार में हुआ, तब तक अपने आसपास घटित घटनाओं को साक्षी भाव से देखने का प्रयास किया, जैसे चचा गालिब ने कहा था-
बाज़ार से गुज़रा हूँ, खरीदार नहीं हूँ।
मैंने ज़िक्र किया था कि एक बार हमारे अंग्रेजी शिक्षक ने स्पेयर पीरियड में हमसे एक निबंध लिखने को कहा था-‘इफ आइ वर ए माली’, मैंने रफ कॉपी में वह निबंध लिखा था और सब छात्रों की तरह उनको सुना दिया था। बाद में उन शिक्षक ने मुझसे वो निबंध मांगा था, क्योंकि उनको लगा होगा कि उसमें कुछ ऐसे पॉइंट्स थे जो वे शिक्षण हेतु अपने ड्राफ्ट में शामिल कर सकते थे। लेकिन मैं उनको वह नहीं दे पाया था, क्योंकि मैंने उसे रफ कॉपी में लिखा था और फाड़ दिया था।
मेरे ये ब्लॉग, आज की तारीख में लिखे गए नए ड्राफ्ट हैं, लेकिन ये रफ कॉपी में नहीं लिखे गए हैं। संभव है कि भविष्य मेरे कोई गुरू इनकी मांग करें तो मैं संजोकर इनको दे सकता हूँ अथवा संभव है कि किसी प्रकार पुस्तक रूप में प्रकाशन की सनक भी चढ़ जाए तो इनका सदुपयोग किया जा सकता है। मेरी कुछ कविताएं भी इस बहाने सुरक्षित हो जाएंगी। इसलिए इसका ज्यादा महत्व नहीं है कि कितने लोग इसको पढ़ते हैं।
अतीत में झांकना इंसान को अच्छा लगता है, क्योंकि जो घटनाएं अपने समय पर अत्यंत पीड़ादायक रही हों, वे भी आज की तारीख में सुरक्षित अनुभव और मार्गदर्शक बन जाती हैं।
लेकिन फिर भी, कब तक अतीत में रहा जाए, जंप लगाकर वर्तमान में आना अच्छा रहेगा?
चलिए ऐसा ही करते हैं।
सेवानिवृत्त होने के बाद 1 मई, 2010 से कुछ महीने तक हम लखनऊ के अपने घर में रहे, जिसे बड़ी मेहनत से अर्जित और विकसित किया था, लेकिन जल्दी ही एहसास हुआ कि हमें दिल्ली, ग़ुड़गांव आना होगा बच्चों के पास। मकान को अर्जित करने के लिए पत्नी और बच्चों ने अधिक मेहनत की थी, निपटाने के लिए मैंने ज्यादा की, क्योंकि उसके लिए दिल्ली/गुड़गांव से कई बार लखनऊ आना पड़ा।
कुछ समय दिल्ली में मालवीय नगर के पास और उसके बाद गुड़गांव में 2-3 जगहों पर 5-6 साल तक रहे और अभी 6 महीने पहले ही एक हाई राइज़ टॉवर्स वाली सोसायटी में शिफ्ट हुए, बड़ी खूबसूरत सोसायटी है, पत्नी और बेटों ने लगभग 6 महीने तक भटककर यह आवास चुना, 9वें फ्लोर पर रहते हैं, मैं एकदम वर्तमान में आ गया हूँ।
सोसायटी में जैसा आप जानते हैं, प्रवेश करने पर आगंतुकों को जिसके यहाँ जा रहे हैं उससे संपर्क करना होता है, तब प्रवेश मिलता है। बाहर निकलते समय यदि आप कार में हैं, तो कोई तलाशी नहीं होती, आप यहाँ से कुछ लेकर भी जा सकते हैं। अगर आप पैदल बाहर जा रहे हैं और पूरे फॉर्मल कपड़े पहने हैं तो गेट पर आपकी पूरी तलाशी होगी।
अगर आप बंडी और निक्कर में हैं, तो गार्ड समझ जाएगा कि बंदा यहीं रहता है और सोसायटी में फ्लैट खरीदने या किराये पर लेने में, बेचारा लुट-पिट चुका है, इसकी क्या तलाशी लेनी, और वह आपको ऐसे ही जाने देगा।
खैर,ये तो मज़ाक था, मैं आपको एकदम वर्तमान में ले आया और अब भविष्य की बता दूं। मैंने शुरू में भी काल देवता और स्थान देवता की बात की थी।
बताना यह है कि अब स्थान देवता बदलने वाले हैं। यह संक्रमण काल है, पैकिंग चल रही है। 8-10 दिन में ही अपना शहर गुड़गांव से बदलकर गोआ होने वाला है। बच्चे तो कई बार गोआ घूमकर आए हैं, लेकिन हम पति-पत्नी पहली बार जाएंगे, और अब वहीं रहेंगे।
इसलिए सूचना यह है कि अब शायद अगले ब्लॉग गोआ से ही लिखे जाएंगे, जहाँ तक पूर्वानुमान है वे वर्तमान को लेकर ही होंगे और उनके केंद्र में, मैं स्वयं नहीं रहूंगा। वैसे अतीत का एरिया तो अपनी ही प्रॉपर्टी है, जब कभी मन हो, वहाँ जा सकते हैं।
चलिए अब श्री रमानाथ अवस्थी जी का एक गीत पढ़ लेते हैं-
सो न सका कल याद तुम्हारी आई सारी रात
और पास ही बजी कहीं शहनाई सारी रात
मेरे बहुत चाहने पर भी नींद न मुझ तक आई
ज़हर भरी जादूगरनी-सी मुझको लगी जुन्हाई
मेरा मस्तक सहला कर बोली मुझसे पुरवाई
दूर कहीं दो आँखें भर-भर आईं सारी रात
और पास ही बजी कहीं शहनाई सारी रात
गगन बीच रुक तनिक चन्द्रमा लगा मुझे समझाने
मनचाहा मन पा लेना है खेल नहीं दीवाने
और उसी क्षण टूटा नभ से एक नखत अनजाने
देख जिसे तबियत मेरी घबराई सारी रात
और पास ही बजी कहीं शहनाई सारी रात
रात लगी कहने सो जाओ देखो कोई सपना
जग ने देखा है बहुतों का रोना और तड़पना
यहाँ तुम्हारा क्या, कोई भी नहीं किसी का अपना
समझ अकेला मौत मुझे ललचाई सारी रात
और पास ही बजी कहीं शहनाई सारी रात
मुझे सुलाने की कोशिश में जागे अनगिन तारे
लेकिन बाज़ी जीत गया मैं वे सबके सब हारे
जाते-जाते चाँद कह गया मुझसे बड़े सकारे
एक कली मुरझाने को मुसकाई सारी रात
और पास ही बजी कहीं शहनाई सारी रात
जल्दी ही फिर मिलेंगे, नमस्कार।
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