68. पहुंचा कौन शिखर पर

एक विषय जिसके संबंध में बात करने का बहुत बार मन होता है, वह है टेलेंट की खोज से संबंधित प्रतियोगिताएं। अब वह गीत-संगीत हो, या नृत्य आदि हों सभी क्षेत्रों मे प्रतिभाओं की खोज के लिए प्रतियोगिताएं होती हैं। शुरू में इन प्रतियोगिताओं को जीतकर सामने आए प्रतियोगी तो सच में अपने क्षेत्रों में स्थापित हो गए लेकिन शायद बाद में इनको जीतने वाले उतना आगे, इस प्रतियोगिता में विजयी होने के बल पर न जा पाएं।

‘थ्री ईडियट्स’ के प्रतिभासंपन्न प्रोफेसर बताते थे न, कि दूसरा कौन आया, यह कोई याद नहीं रखता, इसी तरह शायद बाद में हुई प्रतियोगिताओं के विजेताओं को वह मुकाम हासिल नहीं हो पाता, जो शुरू में प्रतियोगिता जीतने वाले को मिलता है।

इसका उल्टा भी होता है, कॉमेडी शो का पुरस्कार जीतने वाले- कपिल शर्मा पहले व्यक्ति नहीं थे, लेकिन आज अपने शो के कारण, उनको जो मुकाम हासिल है, वो और किसी को नहीं है, इतना कि  इसके कारण वो अपने प्रिय मित्रों को अपमानित भी कर सकते हैं, जो वास्तव में उनको शोभा नहीं देता।

प्रतियोगिता के बल पर जहाँ अपनी प्रतिभा दिखाने और जनता में लोकप्रिय होने के अनेक अवसर आज खुले हैं, जिनसे लोग बाद में अपने ‘शो’ करके कमाई करते रह सकते हैं, वहीं एक शो ऐसा भी है, जिसमें प्रतिभा से ज्यादा तोता-रटंत और भाग्य की भूमिका होती है। सदी के महानायक- श्री अमिताभ बच्चन द्वारा संचालित यह ‘शो’-  ‘कौन बनेगा करोड़पति’, जिसमें जीत की रकम लगातार बढ़ती जा रही है, बेशक जितनी अधिक रकम आयोजक बांटेंगे, उसी अनुपात में उनकी कमाई की संभावना भी रहेगी, क्योंकि लोग अधिक देखेंगे तो विज्ञापन अधिक आएंगे  और ‘एसएमएस’ के माध्यम से भी कमाई अधिक होगी। इस ‘शो’ में पूरा-पूरा हाथ तोता रटंत का और उसके बाद किस्मत का होता है, मैं इसको प्रतिभा से जोड़कर नहीं देखता क्योंकि आपके सामने ऐसा प्रश्न आए, जिसका उत्तर आप जानते हों, जनता या आपके मित्र, आपको सही उत्तर बताएं, यह पूरी तरह किस्मत पर निर्भर है, क्योंकि ऐसा तो कोई व्यक्ति नहीं है, जिसे सभी संभावित प्रश्नों के सही उत्तर मालूम हों।

आज जबकि हर व्यक्ति भागकर कुतुब मीनार पर चढ़ जाना चाहता है, और उसको बताया जाता है कि आप ऐसा कर सकते हैं, तब ऐसे कार्यक्रमों का बढ़ते जाना स्वाभाविक है। एक दर्शक, श्रोता के रूप में अच्छे-अच्छे गायक-गायिकाओं को सुनने का मौका मिले, अन्य क्षेत्रों में कलाकारों का अच्छा प्रदर्शन देखने को मिले, यह अच्छी बात है।

मेरी चिंता उन लोगों के लिए है, जो बड़ी आस लेकर इस दौड़ में शामिल होते हैं, कुछ उनके अंदर होता है, उम्मीद भी होती है, लेकिन शिखर पर तो जगह बहुत सीमित होती है। एक प्रतियोगिता में, एक ही व्यक्ति प्रथम स्थान प्राप्त करता है, और माफ करें यह भी ज़रूरी नहीं है कि जो प्रथम स्थान प्राप्त करता अथवा करती है वह सर्वश्रेष्ठ हो, विशेष रूप से जबकि क्षेत्रीय आधार पर प्राप्त लोगों के वोट के कारण, इस बात की पूरी संभावना रहती है कि अच्छे कलाकार पहले ही बाहर निकल जाएं।

जब कोई प्रतियोगी बाहर निकलता है तब निर्णायकगण, जो कि बहुत से मामलों में मज़बूर भी होते हैं, वे अपनी     सहानुभूति भी दिखाते हैं, लेकिन मुझे लगता है कि ये प्रतियोगिताएं जो कलाकारों को आगे बढ़ाने के लिए होती हैं, कुछ मामलों में कलाकारों की आगे बढ़ने की संभावनाओं को समाप्त तो नहीं कर देतीं।

मैंने विशेष रूप से बच्चों के मामले में देखा है कि जहाँ उनके ऊपर दबाव होता है अपने माता-पिता के सपनों को पूरा करने का, ऐसे में कोई बच्चा काफी आगे बढ़ने के बाद, जब अचानक बाहर हो जाता है, तब उसके बाल-मन पर कैसा गंभीर प्रभाव पड़ सकता है, कोई नहीं देखता।

लेकिन भाई ‘लाइफ इज़ ए रेस, नोबॉडी नोज़ हू स्टूड सेकंड, वी ओनली नो हू वाज़ फर्स्ट’ । सो एंजॉय द गेम।

स्व. श्री मिलाप चंद राही के दो शेर, एक बार फिर याद आ रहा है-

खुदा करे कि तू बाम-ए-उरूज़ पर जाकर

किसी को देख सके, सीढ़ियां उतरते हुए।

रवां-दवां थी सियासत में रंग भरते हुए,

लरज़ गई है ज़ुबां, दिल की बात करते हुए।

 

नमस्कार।

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