90. मेरे नाम से खत लिखती है तुमको मेरी तन्हाई!

पिछला ब्लॉग लिखने का जब खयाल आया था, तब मन में एक छवि थी, बाद में लिखता गया और वह मूल छवि जिससे लिखने का सोचा था भूल ही गया, तन्हाई का यही तो  मूल भाव है कि लोग अचानक भूल जाते हैं। वह बात अब कर लेता हूँ।

कुछ समय पहले प्रसिद्ध अभिनेता विनोद खन्ना का देहांत हो गया। बहुत से कलाकार हैं जो कुदरत ने हमसे छीन लिए हैं, जाना तो सभी को होता है, लेकिन एक बात कुछ अलग हुई थी विनोद खन्ना जी के मामले में। जैसा हम जानते हैं विनोद खन्ना जी ने फिल्म जगत में जिन ऊंचाइयों को प्राप्त किया था, वहाँ तक बहुत कम अभिनेता पहुंच पाते हैं। वे अमिताभ बच्चन जी के समकक्ष माने जाते थे। एक अत्यंत सफल फिल्मी हीरो थे और बाद में राजनीति में भी उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई।

कुछ दिन तक विनोद खन्ना जी खबरों से बाहर रहे और फिर एक दिन अचानक सोशल मीडिया में एक फोटो आई, उनकी मृत्यु से शायद एक-दो महीने पहले, एक कृशकाय व्यक्ति और यह सवाल किया गया कि क्या यह  विनोद खन्ना हैं। देखकर विश्वास ही नहीं हुआ, ऐसा लगा कि जिस तरह सोशल मीडिया पर बेसिर-पैर की बातें फैलाई जाती हैं, वैसा ही कुछ है। लेकिन फिर यह स्पष्ट हो गया कि वास्तव में विनोद खन्ना जी को कैंसर हुआ था और कुछ समय बाद उनकी मृत्यु भी हो गई।

उस समय सचमुच वो शेर याद आया था-

दश्त-ए-तन्हाई-ए-हिजरां में खड़ा सोचता हूँ

हाय क्या लोग मेरा साथ निभाने निकले।

लगभग 25-30 साल पहले दिल्ली में, साहित्य अकादमी में एक शायर से उनके कुछ शेर सुने थे ‘तन्हाई’ पर, शायद पाकिस्तानी शायर थे, दो शेर आज तक याद हैं (शायर कौन थे, मैं नहीं कह सकता),  शेर इस तरह हैं-

मैं तो खयालों की दुनिया में खुद को बहला लेता हूँ,

मेरे नाम से खत लिखती है, तुमको मेरी तन्हाई।

घर में मुकफ्फल करके उसको, मैं तो सफर पे निकला था,

रेल चली तो बैठी हुई थी, मेरे बराबर तन्हाई।

तन्हाई नाम का यह शत्रु, कोई छोटा-मोटा शत्रु नहीं है। इस शत्रु का सामना करने के लिए, जहाँ तक संभव हो, हम दिल से एक साथ हो जाएं तो इस शत्रु का अस्तित्व ही नहीं रहेगा, लेकिन इस बात को कहना आसान है, करना नहीं।

शायद तन्हाई से बचने का ही लोगों को सबसे अच्छा रास्ता यह लगता है कि वे एक पार्टी का झंडा थाम लेते हैं और दूसरी पार्टी को गालियां देने में अपनी पूरी प्रतिभा का इस्तेमाल करते हैं।

इस ब्लॉग के मामले में मैंने यह विकल्प नहीं चुना है। वैसे भी जो लोग यह सोचते हैं कि एक पार्टी दूध की धुली है और दूसरी को वे कौरव सेना मानते हैं उनको शायद कल्पना लोक में रहना ज्यादा अच्छा लगता है।

इस ब्लॉग के माध्यम से मैं उन ही नर्म-नाज़ुक दिलों का दरवाज़ा खटखटाना चाहता हूँ, जो मानवीय संवेदनाओं के लिए खुले हैं, बाकी निश्चिंत रहें उनको डिस्टर्ब करने का मेरा कोई इरादा नहीं है।

नमस्कार।

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