121. दिल ही तो है !

अगर यह पूछा जाए कि रसोई में कौन सी वस्तु, कौन सा पदार्थ सबसे महत्वपूर्ण है तो पाक कला में निपुण कोई व्यक्ति, अब महिला कहने से बच रहा हूँ, क्योंकि बड़े‌-बड़े ‘शेफ’ आज की तारीख में पुरुष हैं, हाँ कोई भी ऐसा व्यक्ति बता देगा कि यह वस्तु सबसे ज्यादा उपयोग में आती है अथवा यह वस्तु सर्वाधिक गुणकारी है।

अब यही सवाल अगर कविता, शायरी, विशेष रूप से फिल्मी गीतों के बारे में पूछा जाए, तो मुझे लगता है कि जो शब्द प्रतियोगिता में सबसे आगे आएंगे, उनमें से एक प्रमुख शब्द है-‘दिल’।

मुकेश जी के एक गीत के बोल याद आ रहे हैं-

दिल से तुझको बेदिली है, मुझको है दिल का गुरूर,

तू ये माने के न माने, लोग मानेंगे ज़ुरूर !

आगे बढ़ने से पहले, दो शेर याद आ रहे हैं जो गुलाम अली जी ने एक गज़ल के प्रारंभ में गाए हैं-

दिल की चोटों ने कभी, चैन से रहने न दिया,

जब चली सर्द हवा, मैंने तुझे याद किया।

इसका रोना नहीं, क्यों तुमने किया दिल बर्बाद,

इसका गम है कि बहुत देर में बर्बाद किया।

कुछ बार ऐसे लोगों की बात होती है, जो चावल के एक दाने पर काफी बड़ा आलेख, श्लोक, यहाँ तक कि पूरी गीता भी लिख देते हैं। उन चमत्कारों का तो पता नहीं, परंतु ‘दिल’, जिसको शरीर विज्ञानी, आकार-प्रकार के लिहाज़ से पता नहीं कितना छोटा या बड़ा मानते हैं, परंतु उस पर कितना कुछ अंकित हो पाता है, उसकी कोई सीमा नहीं है।

फिल्म ‘दिल ही तो है’ में मुकेश जी ने, साहिर लुधियानवी जी के लिखे दो गीत गाए हैं, जिनका मुखड़ा लगभग एक ही जैसा है, एक उल्लास से भरा है और दूसरा उदासी से, मन हो रहा है दोनों को पूरा ही शेयर करने का-

दिल जो भी कहेगा मानेंगे,

दुनिया में हमारा दिल ही तो है।

हार मानी नहीं ज़िंदगी से,

हंस के मिलते रहे हर किसी से,

क्यों न इस दिल पे क़ुर्बान जाएं,

सह लिए कितने गम किस खुशी से,

सुख में जो न खेले हम ही तो हैं,

दुख से जो न हारा दिल ही तो है।।

कोई साथी न कोई सहारा,

कोई मंज़िल न कोई किनारा,

रुक गए हम जहाँ दिल ने रोका,

चल दिए जिस तरफ दिल पुकारा।

हम प्यार के प्यासे लोगों की,

मंज़िल का इशारा दिल ही तो है॥

अपनी जिंदादिली के सहारे,

हमने दिन ज़िंदगी के गुज़ारे,

वर्ना इस बेमुरव्वत जहाँ में,

और कब्ज़े में क्या था हमारे,

हर चीज है दौलत वालों की,

मुफलिस का बेचारा दिल ही तो है॥

अब दूसरा गीत-

भूले से मुहब्बत कर बैठा,

नादां था बिचारा दिल ही तो है।

हर दिल से खता हो जाती है,

बिगड़ो न खुदारा दिल ही तो है।

इस तरह निगाहें मत फेरो,

ऐसा न हो धड़कन रुक जाए,

सीने में कोई पत्थर तो नहीं,

एहसास का मारा दिल ही तो है।

बेदादगरों की ठोकर से,

सब ख्वाब सुहाने चूर हुए,

अब दिल का सहारा गम ही तो है,

अब गम का सहारा दिल ही तो है।

जब इतना अधिक स्थान ‘दिल’ ने कविता-शायरी में घेरा है, एक ब्लॉग में तो इसका समाना मुश्किल है। मेरा नाम जोकर में नायक इस बात पर खुश होता है कि उसके दिल में पूरी दुनिया समा जाएगी और फिर उसका दिल टूटकर बिखर जाता है।

बहुत सारी बातें याद आ रही हैं, दिल को लेकर, कुछ बातें आगे भी तो करेंगे!

 

नमस्कार

————

3 responses to “121. दिल ही तो है !”

  1. रसोई में झलकती सबसे महत्वपूर्ण शब्द महिला ही होगी सर। चाहे दुनिया कितना ही तरक्की कर ले।

    Liked by 1 person

    1. shri.krishna.sharma avatar
      shri.krishna.sharma

      सही बात है, लेकिन पुरूष भी वहाँ जा रहे हैं न!

      Like

      1. जा तो रहे हैं हम, पर उनकी मकसद की तुलना नहीं कर सकते।

        Liked by 1 person

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s

%d bloggers like this: