124. जीते जी तरना चाहे तो, पी ले गंगाजल के बदले!

आस्था के बारे में एक प्रसंग याद आ रहा है, जो कहीं सुना था।

ये माना जाता है कि यदि आप सच्चे मन से किसी बात को मानते हैं, इस प्रसंग में यदि आप ईश्वर को पूरे मन से मानते हैं, तो वह आपको अवश्य मिल जाएगा।

इस बीच कवि सोम ठाकुर जी के गीत ‘प्रेम का प्याला’ से कुछ पंक्तियां याद आ रही हैं-

जीते जी तरना चाहे तो, पी ले गंगाजल के बदले,

मीरा ने टेरे श्याम पिया तो अर्थ हलाहल के बदले,

मरघट में पी खामोशी से, महफिल में शोर मचाकर पी।

ये प्याला प्रेम का प्याला है, तू नाचके और नचाकर पी,

खुल खेलके पी, झुक झूमके पी, मत गैर से नज़र बचाकर पी।

ये प्याला प्रेम का प्याला है।

बहुत ही सुंदर गीत है ये, जितना अचानक याद आया, मैंने शेयर कर लिया। असल में यह आस्था और विश्वास का ही मामला है। बच्चे का विश्वास! वो जो मानता है, पूरी तरह मानता है, कोई ढोंग नहीं करता।

तो प्रसंग यह है कि एक पंडित जी रोज सुबह नदी में स्नान करने जाते, वे नदी किनारे अपने वस्त्र आदि रखकर नदी में स्नान करते। अक्सर एक बच्चा, जो गाय चराने आता था, उससे वे अपने सामान का ध्यान रखने को कहते थे और वो ऐसा करता भी था।

वह बच्चा उनको स्नान के दौरान प्रार्थना करते देखता, जिसमें वे अपने कंठ को अपनी उंगलियों के बीच हल्का सा दबा लेते थे। एक बार जब वे इसी प्रकार बच्चे से निगरानी के लिए बोलकर, नदी में जा रहे थे तब बच्चे ने पूछा पहले ये बताओ कि आप ये कंठ को क्यों दबाते हो। पंडित जी ने बोला हम भगवान की प्रार्थना करते हैं, दर्शन देने के लिए कहते हैं।

बच्चे ने पूछा कि क्या आपको भगवान दिखाई देते हैं, पंडित जी ने टालने के लिए बोल दिया कि ‘हां’।

इसके बाद बच्चा एक बार नदी में नहाने के लिए गया और उसने अपना कंठ दबाकर प्रभु से प्रार्थना की कि वे उसको दर्शन दें। कुछ देर तक दर्शन न होने पर वो बोला ‘आप जानते नहीं मैं कितना ज़िद्दी हूँ, मुझे दर्शन दो, नहीं तो मैं कंठ से हाथ नहीं हटाऊंगा!’

प्रभु ने सोचा यह पागल तो मर जाएगा, सो उन्होंने नदी किनारे भगवान श्रीकृष्ण के रूप में, प्रकट होकर कहा अब तो हाथ हटाओ देखो मैं आ गया, बच्चे ने कहा वहीं रुको, फिर पूछा, ‘आप कौन हो’ , उन्होंने कहा मैं वही ईश्वर हूँ, जिसको तुम बुला रहे थे।‘ बच्चा बोला, मैं नहीं मानता, उसने उनको रस्सी से पेड़ के साथ बांधकर कहा- ‘रुको, मैं अभी आता हू‘, वह भागकर पंडित जी को बुलाकर लाया, शुरू में तो पंडित जी को कुछ दिखाई नहीं दिया, लेकिन बाद में बच्चे की ज़िद के कारण, भगवान ने ढोंगी पंडित जी को भी दर्शन दिए, तब जाकर भगवान बंधन मुक्त हो पाए।

बस यही बात है आज की, प्रेम में ढोंग नहीं, पागलपन ज्यादा काम आता है।

नमस्कार।

————–

4 responses to “124. जीते जी तरना चाहे तो, पी ले गंगाजल के बदले!”

  1. वर्तमान में ढोंग के अंधविश्वासी ज्यादा हैं।

    Like

    1. shri.krishna.sharma avatar
      shri.krishna.sharma

      जी सही कहा आपने।

      Like

  2. deorahulsharma avatar
    deorahulsharma

    मजा तो पागलपन में ही है।

    Liked by 1 person

    1. shri.krishna.sharma avatar
      shri.krishna.sharma

      सही कहा आपने।

      Liked by 1 person

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s

%d bloggers like this: