178. पुरस्कार के बहाने!

कभी कभी कुछ अलग लिखने का मन करता है, आज इसके लिए मुझे बहाना भी मिल गया क्योंकि ब्लॉग लेखन संबंधी एक एवार्ड के लिए मेरा नॉमिनेशन हो गया।
मैंने, सेवानिवृत्ति से पूर्व, 22 वर्ष तक सार्वजनिक क्षेत्र की एक महानवरत्न कंपनी में काम किया, बहुत सी बार अपने ब्लॉग्स में कंपनी का नाम लिखा है, आज नहीं लिखूंगा। इस कंपनी में रहते हुए मैंने अनेक आयोजन किए, जिनमें राष्ट्रीय स्तर के कवि-कलाकार शामिल हुए।
बहुत से आयोजनों में बहुत सारे लोगों को पुरस्कार मिले, कंपनी को भी बहुत से एवार्ड मिले, जिनको स्वीकार करने के संबंध में, बहुत से विनम्रतापूर्वक पुरस्कार स्वीकार करने संबंधी व्याख्यान भी मैंने लिखे, पुरस्कार पाने वाले लोगों की प्रशंसा भी की। लेकिन एक हसरत मन में रह गई कि कभी मैं भी पुरस्कार प्राप्त करूं। ऐसा कभी नहीं हुआ यद्यपि कंपनी के बड़े से बड़े अधिकारियों और राजनैतिक अतिथियों ने भी मेरे कुशल कार्यक्रम संचालन की प्रशंसा की।
मैं कंपनी में राजभाषा कार्यान्वयन के क्षेत्र में कार्य कर रहा था। जब कंपनी में राजभाषा संबंधी गतिविधियों के संबंध में एक पुरस्कार प्रारंभ किया गया, तब गलती से पहला पुरस्कार हमारी परियोजना को मिल गया, क्योंकि उसके मानकों में पत्राचार के आंकडों के अलावा अन्य गतिविधियों, जैसे पत्रिका प्रकाशन, कवि सम्मेलन के आयोजन आदि के संबंध में भी काफी अंक थे।
जब यह गलती हो गई, उसके बाद हमारे केंद्रीय कार्यालय में बैठे राजभाषा के धुरंधर ने मानकों में ऐसा सुधार किया कि अब पुरस्कार केवल और केवल पत्राचार संबंधी झूठी रिपोर्ट के आधार पर ही प्राप्त किया जा सकता था और मैंने इस बारे में सोचना ही छोड़ दिया था।
वैसे पुरानी कहावत है कि सूरज निकलता है तो देर-सवेर सभी उसको स्वीकार करते हैं, सम्मान देते हैं। मुझे लगता है कि आज के समय यह आपकी विज्ञापन क्षमता, प्रेज़ेंटेशन आदि ही हैं, जो आपको मान्यता और सम्मान दिलाते हैं।
असल में एक ब्लॉगर साथी ने- ‘वर्सेटाइल ब्लॉगर एवार्ड’ के लिए मेरा नॉमिनेशन किया तो सुखद आश्चर्य हुआ, क्योंकि मुझे लगता है कि कुछ लोग इनको प्राप्त करने के लिए नहीं बने होते और कुछ लोग लगातार एवार्ड प्राप्त करने के लिए अभिशप्त होते हैं।
मैं पुनः, मुझे एवार्ड हेतु नॉमिनेट करने वाले श्री कृष्ण कुमार लखोटिया जी के प्रति आभार व्यक्त करता हूँ, जो अपने ब्लॉग्स में योग के बारे में बहुत अच्छी जानकारी देते हैं और सुंदर कविताएं भी लिखते हैं।

मुकेश जी का ये गाना याद आ गया, क्योंकि इसमें भी ईनाम का ज़िक्र है, ईनाम, पुरस्कार, एवार्ड ! गीत फिल्म-देवर का है, आनंद बख्शी जी ने लिखा है और संगीतकार हैं- रोशन जी,  बर्दाश्त कर लीजिए-

बहारों ने मेरा चमन लूटकर
खिज़ां को ये इल्ज़ाम क्यों दे दिया
किसीने चलो दुश्मनी की मगर
इसे दोस्ती नाम क्यों दे दिया

मैं समझा नहीं ऐ मेरे हमनशीं
सज़ा ये मिली है मुझे किस लिये
के साक़ी ने लब से मेरे छीन कर
किसी और को जाम क्यों दे दिया

मुझे क्या पता था कभी इश्क़ में
रक़ीबों को कासिद बनाते नहीं
खता हो गई मुझसे कासिद मेरे
तेरे हाथ पैगाम क्यों दे दिया

इलाही यहाँ तेरे इन्साफ़ के
बहुत मैंने चर्चे सुने हैं मगर
सज़ा की जगह एक खतावार को
भला तूने ईनाम क्यों दे दिया

नमस्कार।


2 responses to “178. पुरस्कार के बहाने!”

  1. Nice post

    Like

    1. Thanks dear.

      Like

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s

%d bloggers like this: