184. आ जाए कोई शायद, दरवाज़ा खुला रखना!

आज भूपिंदर सिंह और मीताली सिंह की गाई एक गज़ल शेयर कर रहा हूँ, जिसे क़तील शिफाई जी ने लिखा है और इस गायक जोड़ी ने बड़े सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है।
गज़ल में जो मुख्य बातें कही गई हैं, वे इस ओर इशारा करती हैं कि हम दिल में आशा, इंतज़ार और लोगों के कुशल के लिए प्रार्थना जारी रखें, कभी उम्मीद न खोएं। अपने एहसास न केवल जिंदा रखें बल्कि उन्हें रोशन रखें।
शायर ये भी कहता है कि बेचैन दिल कभी चैन से बैठने नहीं देता, और ये भी कि कुछ ज़ख्म हरे रखने चाहिएं, कोई आंसू आंखों से गिराकर बर्बाद नहीं करना चाहिए, अब शायर लोग क्या नहीं कह सकते जी, आप बस इस गज़ल का आनंद लीजिए-

राहों पे नज़र रखना, होठों पे दुआ रखना,
आ जाए कोई शायद, दरवाज़ा खुला रखना।
एहसास की शमा को इस तरह जला रखना,
अपनी भी खबर रखना, उनका भी पता रखना।
रातों को भटकने की देता है सज़ा मुझको,
दुश्वार है पहलू में दिल तेरे बिना रखना।
लोगों को निगाहों से पढ़ लेने की आदत है,
लोगों की तहरीरों को, लोगों से बचा रखना।
भूलूं मैं अगर ऐ दिल, तू याद दिला देना,
तनहाई के लम्हों का हर ज़ख्म हरा रखना।
इक बूंद भी अश्कों की दामन न भिगो पाए,
गम उसकी अमानत है, पलकों पे सजा रखना।
इस तरह क़तील उस से बर्ताव रहे अपना,
वो भी न बुरा माने, दिल का भी कहा रखना।

आज के लिए इतना ही।

नमस्कार।

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