आज कृष्ण बिहारी ‘नूर’ जी की लिखी एक बहुत प्यारी गज़ल शेयर कर रहा हूँ, इस गज़ल के कुछ शेर जगजीत सिंह जी ने भी गाए थे। इस गज़ल के कुछ शेर वास्तव में बहुत अच्छे हैं, जैसे- ‘मैं जिसके हाथों में एक फूल दे के आया था, उसी के हाथ का पत्थर मेरी तलाश में है’, अथवा ‘मैं एक क़तरा हूँ, मेरा अलग वज़ूद तो है, हुआ करे जो समंदर मेरी तलाश में है!’ लीजिए प्रस्तुत है ये नायाब गज़ल-
बस एक वक्त का खंजर मेरी तलाश में है,
जो रोज भेष बदल कर मेरी तलाश में है।
ये और बात कि पहचानता नहीं है मुझे
सुना है एक सितमग़र मेरी तलाश में है।
वो एक साया है अपना हो या पराया हो
जनम जनम से बराबर मेरी तलाश में है।
अधूरे ख़्वाबों से उकता के जिसको छोड़ दिया
शिकन नसीब वो बिस्तर मेरी तलाश में है।
ये मेरे घर की उदासी है और कुछ भी नहीं
दिया जलाये जो दर पर मेरी तलाश में है।
अज़ीज़ मैं तुझे किस कदर कि हर एक ग़म
तेरी निग़ाह बचाकर मेरी तलाश में है।
मैं एक कतरा हूँ मेरा अलग वजूद तो है,
दुआ करे जो समंदर मेरी तलाश में है।
मैं देवता की तरह कैद अपने मन्दिर में,
वो मेरे जिस्म के बाहर मेरी तलाश में है।
मैं जिसके हाथ में एक फूल देके आया था,
उसी के हाथ का पत्थर मेरी तलाश में है।
वो जिस ख़ुलूस की शिद्दत ने मार डाला ‘नूर’
वही ख़ुलूस मुकर्रर मेरी तलाश में है।
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