215. लंदन की आंख!

 

चलिए एक बार फिर से लंदन की यात्रा पर निकलते हैं। लंदन के बहुत सारे स्थान जैसा मैंने पहले बताया था, हमने क्रूज़ की यात्रा के दौरान देखे था। अब बारी थी इनमें से एक-दो को पास से देखने की। इसी प्रयास में हम कल ‘लंदन आई’ और ‘टॉवर ब्रिज’ की यात्रा में निकले।
एक बात मैं जरूर कहना चाहता हूँ, मुझमें ‘ट्रैवल ब्लॉगर्स’ जैसा धैर्य नहीं है, मैं सामान्यतः किसी भाव को लेकर ब्लॉग लिखना शुरू करता हूँ और बहुत सी बार ब्लॉग पोस्ट खत्म होते-होते सोचता हूँ, अरे क्या मैंने इस विषय में लिखने के बारे में सोचा था! लेकिन ट्रैवल ब्लॉगिंग में एक जगह ‘फोकस’ रखकर लिखना होता है। ठीक है जी, मैं कोशिश करूंगा।

तो कल हम निकले, यह लक्ष्य बनाकर कि आज ‘लंदन आई’ और ‘टॉवर ब्रिज’ देखना है। अधिक समय बर्बाद न हो, इसलिए हमने घर से सीधे ‘लंदन आई’ का रुख किया। ‘लंदन आई’ जैसा कि आप जानते ही होंगे एक ‘आकाशीय झूला’ है, जो इतना बड़ा है और इतना धीरे चलता है कि अगर आप इसे थोड़ा भी दूर से देखें तो यह हमेशा रुका हुआ ही लगता है, एकदम पास जाने के बाद पता चलता है कि यह धीरे-धीरे चल रहा है। अपना एक फेरा यह लगभग आधे घंटे में पूरा करता है।

जिस ऊंचाई पर यह झूला ले जाता है, वहाँ जाने के बाद लंदन में ऐसा कौन सा प्रमुख स्थान है, जो आप नहीं देख सकते, लेकिन कुछ स्थानों को देखने के लिए दूरदृष्टि भी जबर्दस्त चाहिए ना जी!

खैर बड़े काम के लिए प्रयास भी बड़े करने पड़ते हैं। बाधाएं भी बड़ी आती हैं। मेरे बेटा-बहू, जो लंदन में ही रह रहे हैं और इन स्थानों को कई बार देख चुके हैं, वे हमें- पति-पत्नी को ये दिखाने ले गए थे। आधा घंटा तक बेटा लाइन में लगा रहा, तब टिकट मिल पाया। इस बीच हम वहाँ आसपास घूम लिए, जहाँ लगभग मेले जैसा माहौल रहता है। एक बात और मैंने देखी लंदन में पैसा कमाने के लिए लोग सार्वजनिक स्थानों में बाकायदा माइक और साज़ के साथ गाना गाते हैं। बहुत से वेश बनाते हैं, जैसे कि कल हम वहाँ एक ‘चार्ली चैप्लिन’ और एक ‘गोल्डन लेडी’ से मिले। हाँ चैप्लिन जी कुछ मोटे ज्यादा हो गए थे, मुझे लगा कि ऐसे में वो फुर्ती कैसे दिखा पाएंगे, जो उनकी फिल्मों में देखने को मिलती है। (मुझे यह भी खयाल आता है कि भारत में ज्यादा जोर लोग एटीएम लूटने अथवा अन्य प्रकार के फ्रॉड सीखने पर लगा रहे हैं!)
बेटा जब टिकट लेकर आ गया, तब हम सबने वहाँ 360 डिग्री अनुभव वाली लगभग 10-15 मिनट की फिल्म देखी, जो ‘लंदन आई’ अनुभव का एक हिस्सा है। भारत में भी ‘छोटा चेतन’ जैसी 3-डी फिल्म पहले बनी थी, और विशेष चश्मा पहनकर कुछ अलग अनुभव कराने का प्रयास किया गया था, लेकिन मानना पड़ेगा कि इस अनुभव के सामने वह सब कुछ भी नहीं था, ऐसा लगा कि सब कुछ अपने तीन तरफ हो रहा है, कबूतर जैसे कान से टकराते हुए चला गया, कई बार अपना सिर हिलाना पड़ा, लगा कि कोई वस्तु टकरा जाएगी। सचमुच ‘लंदन आई’ के आकाशीय झूले’ पर चढ़ने से पहले मिला यह अनुभव दिव्य था।


इसके बाद लगभग आधा घंटा और लाइन में लगे रहने के बाद आकाश-यात्रा का अपना नंबर आया, मैंने गिना नहीं लेकिन बहुत सारे अति सुंदर केबिन इस झूले में हैं, हर केबिन में 15-20 लोग तो आराम से आ ही जाते हैं, कुछ बैठ भी जाते हैं, वैसे चारों तरफ के दिव्य नजारे को देखने, अपने कैमरों में कैद करने के लिए अधिकतर लोग खड़े रहना ही पसंद करते हैं। नीचे बहती विशाल थेम्स नदी, उसके दोनो किनारों से झांकता लंदन का इतिहास और वर्तमान। ये सब ऐसा है जो बयान करने की चीज नहीं है और मेरी इतनी क्षमता भी नहीं है। बस यही कि अगर जीवन में मौका मिले तो ये अनुभव अवश्य कर लेना चाहिए।

आगे और बात कल करेंगे, आज के लिए इतना ही, नमस्कार।
नमस्कार।


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