228. – मैं एक बादल आवारा!

बरसात के मौसम में हवाई यात्रा के दौरान आकाश में बादलों के कुछ चित्र खींचने का अवसर मिला। प्रकृति के, बादलों के चित्र तो वैसे भी अच्छे लगते हैं, लेकिन आकाश से, बादलों के ऊपर से लिए गए चित्र, वो तो विशेष होंगे ना! कभी यह भी लगता है कि जहाज से बाहर, उसके ऊपर बैठकर चित्र खींचने का अवसर मिले तब असली मजा आ जाए।

लेकिन एक तो यह वैसे ही असंभव है, ऊपर से जहाज में जैसी घोषणा होती है बाहर के तापमान के बारे में, शायद माइनस 15-20 डिग्री से लेकर और भी कहीं नीचे तक! मतलब वहाँ अगर चित्र लेने के लिए जाएंगे तो खुद उस चित्र का हिस्सा बन जाएंगे!

खैर ज्यादा लंबी बात नहीं करूंगा, ये चित्र शेयर करने का मन था लेकिन हाँ, जो चित्र आकाश से लिया था, वह नहीं डाल सका, इसलिए धरती से लिया हुआ एक चित्र ही यहाँ डाल रहा हूँ। और एक बादल ने मुझसे यह गीत शेयर करने की फरमाइश भी की है, राजिंदर क्रिशन जी के लिखे इस गीत को सलिल चौधरी जी के संगीत निर्देशन में लता मंगेशकर जी और तलत महमूद जी ने गाया है। सो प्रस्तुत है ये गीत-

तलत: इतना न मुझसे तू प्यार बढ़ा
कि मैं एक बादल आवारा
कैसे किसी का सहारा बनूँ
कि मैं खुद बेघर बेचारा।

मुझे एक जगह आराम नहीं
रुक जाना मेरा काम नहीं
मेरा साथ कहाँ तक दोगी तुम
मै देश विदेश का बंजारा।

लता: इसलिए तुझसे प्यार करूं
कि तू एक बादल आवारा
जनम जनम से हूँ साथ तेरे
कि नाम मेरा जल की धारा।
ओ नील गगन के दीवाने
तू प्यार न मेरा पहचाने
मैं तब तक साथ चलूँ तेरे
जब तक न कहे तू मैं हारा।

तलत: क्यूँ प्यार में तू नादान बने
इक बादल का अरमान बने
मेरा साथ कहाँ तक दोगी तुम
मैं देस-बिदेस का बंजारा

तलत: मदहोश हमेशा रहता हूँ
खामोश हूँ कब कुछ कहता हूँ
कोई क्या जाने मेरे सीने में
है बिजली का भी अंगारा।
अरमान था गुलशन पर बरसूँ
एक शोख के दामन पर बरसूँ
अफ़सोस जली मिट्टी पे मुझे
तक़दीर ने मेरी दे मारा।

अब इसके बाद तो यही है कि, ‘क्या कहूं, और कहने को क्या रह गया’!
नमस्कार।


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