भारतीय राजनीति की वर्तमान दशा !

हमारे देश में आज भी हम, जहाँ देश की आज़ादी के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने वाले सेनानियों, अथक संघर्ष करने वाले नेताओं को स्मरण करते हैं, वहीं हम यह भी मानते हैं कि देश की आजादी के साथ ही राजा-रजवाड़ों के बीच बंटे देश को एक डोरी में पिरोने वाले सरदार पटेल जी की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण थी। कश्मीर जैसे एकाध स्थान पर जहाँ सरदार पटेल जी की नहीं चल पाई, वहाँ हम आज भी खमियाजा भुगत रहे हैं।

आज लौह पुरुष सरदार पटेल जी की याद अचानक आ गई! आज जब हम आज के नेताओं के अत्यंत संकीर्ण दृष्टिकोण को देखते हैं तो शर्म आती है। बहुत सारी बातें हैं, जैसे वोट के लिए ये नेता लोग आरक्षण को एक सदा चलने वाली व्यवस्था बना दे रहे हैं, जबकि यह व्यवस्था सीमित समय के लिए थी। इस सीमित समय में सरकारों को ऐसी व्यवस्था करनी थी कि जो पिछड़े हैं वे बराबरी के स्तर पर प्रतियोगिता कर सकें।

वास्तव में पिछड़े लोगों को आगे लाने के लिए कुछ उल्लेखनीय नहीं हुआ है। पिछड़े लोगों के बीच एक सुविधा भोगी वर्ग पनप गया है और सारी सुविधाओं का लाभ वही लोग उठा रहे हैं। यह एक क्षेत्र है नेताओं द्वारा वोट-लोलुपता के कारण समस्याओं को बढ़ाते जाने का!

एक दूसरा क्षेत्र है राज्यों के बीच निरंतर पानी के बंटवारे के लेकर चलने वाले विवाद का! जब पानी ज्यादा बढ़ जाता है, बाढ़ की स्थिति आती है, तब तो राज्य तुरंत पानी छोड़ देते हैं वरना वे अपने राज्य से पानी को आगे जाने ही नहीं देना चाहते। नेता लोग न्यायसंगत जल-बंटवारा करने की बजाय उसके नाम पर राजनीति करने को तत्पर रहते हैं। कोई देश के लिए सोचने वाला है इन संकीर्ण दृष्टि वाले लोगों में!

इस विषय पर लिखने को मजबूर जिस घटना ने किया वह है गुजरात से इन दिनों हो रहा उत्तर प्रदेश और बिहार के श्रमिकों का पलायन। इस बहाने कुछ बहुत छोटे विचारों वाले नेता, स्थानीय लोगों के बीच अपना क़द बढ़ाना चाह रहे हैं। और यह कोई पहली बार होने वाली घटना नहीं है!

महाराष्ट्र में एक शुद्ध रूप से गुंडा परिवार है, जिसने इस विभाजक दृष्टि के आधार पर लंबे समय से वहाँ की राजनीति में अपना दबदबा बनाया हुआ है। अब तो यह परिवार भी दो हिस्सों में बंट गया है और उनमें यह प्रतियोगिता चलती है कि कौन ज्यादा बदतमीजी करेगा। जब ठाकरे परिवार इस मानसिकता से इतनी तरक्की कर सकता है तो अल्पेश ठाकोर और उस जैसे लोग इस फार्मूले को क्यों नहीं आजमायेंगे!

दिक्कत तब होती है जब कुछ राष्ट्रीय पार्टियां भी इस विषय में स्पष्ट बात कहने से कतराती हैं, क्योंकि वे उसी टोले में हैं।

आज यही निवेदन करने का खयाल आया कि जनता को जागरूक होने की जरूरत है। जैसे एक नेता को दिखाया गया कि वह धमकी दे रहा था कि कल सुबह तक यहाँ से निकल जाओ, नहीं तो बहुत बुरा अंजाम होगा।

कई बार कुछ बहुत बुरी बातें भी अच्छी लगती हैं और शायद कभी उनका होना जरूरी सा हो जाता है। जैसे जो नेता इस तरह की धमकी दे रहे थे, उनकी यदि सार्वजनिक रूप से जमकर ठुकाई की जाए तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा।

गुंडागर्दी की ये गतिविधियां, एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना को आधार बनाकर शुरू की गईं, जो सरासर गलत है। किसी एक अपराधी के कारण आप किसी प्रदेश के सभी लोगों को अपराधी मान लेंगे, तो ऐसे अपराधी तो गुजरात में भी होंगे।

यही कहना चाहता हूँ कि मेरे देश के जागरूक नागरिक ऐसी विभाजनकारी शक्तियों को हर तरह से ध्यान में रखें और भरपूर सबक सिखाएं।

आज के लिए इतना ही।

नमस्कार।
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2 responses to “भारतीय राजनीति की वर्तमान दशा !”

  1. I agree with all the points you have mentioned Sir. The country has to fight another war of independence from these political goons.

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  2. Thanks for the comments Jai Ji.

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