पिछले दिनों प्रधानमंत्री मोदी जी ने एक बात कह दी थी कि पकौड़े बेचना भी कमाई का एक तरीका हो सकता है। यह बात जिस संदर्भ में कही गई थी उसमें सही थी लेकिन विरोधियों को जैसे इसे लेना चाहिए, उन्होंने उसी तरह लिया।
ऐसे ही खयाल आया कि हमारे यहाँ कमाई के ऐसे वैकल्पिक तरीके क्या हैं, जिनके लिए रोज़गार की कतारों में न खड़ा होना पड़े! वैसे देखा जाए तो, अगर आपके पास कोई कला है और उसको इस्तेमाल करने का सही तरीका भी आप जानते हैं, तो आपको कमाई में कोई दिक्कत होने वाली नहीं है।
अगर आपको कोई कलात्मक वस्तु तैयार करनी आती है जिसके ग्राहक काफी हैं, और आप ये भी जानते हैं कि डिमांड कहाँ है तो आपको कमाई में कोई परेशानी नहीं होगी। इतना ही नहीं यदि आपको खाने-पीने की कोई वस्तु ही स्वादिष्ट तरीके से तैयार करनी आती है, वह चाय से लेकर चाट-पकौड़ी तक कुछ भी हो सकती है और आप सही जगह से अपना काम शुरू करते हैं तो कोई सीमा नहीं है आपके आगे आगे बढ़ने की! आप ‘बीकानेरवाला’ से लेकर ‘केएफसी’ तक किसी भी श्रेणी में अपनी ‘चेन’ विकसित कर सकते हैं और ‘फ्रेंचाइजी’ भी दे सकते हैं।
हाँ व्यवसाय में ‘भाग्य’ भी एक फैक्टर होता है, इससे कौन इंकार कर सकता है।
कुछ व्यवसाय जो हमारे देश में ही ज्यादा चलते हैं, उनमें एक तो पंडिताई का ही है। आप पूजा-पाठ करवाइए और लोग दक्षिणा देने के अलावा आपके पैर भी छुएंगे। आप भविष्य बताने जैसा काम भी कर सकते हैं तो टीवी चैनलों से भी आपको अच्छी-खासी कमाई हो सकती है। भारत में तो उपदेशकों की कमाई भी अच्छी होती है और ‘पर उपदेश कुशल’ तो हम लोग हैं ही। बस यही है कि अगर धंधा अच्छा चल जाए तो उसके बाद अपनी किसी हरकत से उसे चौपट न कर दीजिए!
आजकल कुंभ की रिपोर्टें देखकर मालूम होता कि अपने देश में साधु-बाबाओं की संख्या भी तो अच्छी खासी है जी!
एक क्षेत्र तो भिक्षाटन का भी है जी, जिसके सदस्य आपको भारत के हर क्षेत्र में मिल जाएंगे और सुनते हैं कि इनके सिंडीकेट भी हैं, जहाँ लोगों से यह काम कराया जाता है।
आज यह विषय मेरे मन में पिछले वर्ष मई-जून में की गई लंदन यात्रा को याद करके आया। मैंने देखा कि वहाँ श्रम को बहुत महत्व दिया जाता है। जूता-पॉलिश करने वाले को देखकर भी लगेगा नहीं कि यह पॉलिश करता है। वह कुर्सी पर बैठकर पॉलिश करता है जबकि पॉलिश कराने वाला ऊंचे प्लेटफॉर्म पर बैठा होता है।
मुझे याद यही आया कि वहाँ पर कुछ लोग जो वैकल्पिक तरीका कमाई का अपनाते हैं, वे क्या करते हैं। मैंने देखा कि वहाँ कुछ पर्यटन स्थलों के आसपास लोग गाना गाते रहते हैं, इंस्ट्रूमेंट बजाते हैं। आप चाहें तो उनको कुछ दे सकते हैं, वहाँ मैंने किसी को मांगते नहीं देखा। जैसे लंदन में ‘ग्रीनविच’ के पास जहाँ एक पुराने ‘शिप’ में म्यूजियम बना है उसके पास लोग गाते रहते हैं। लंदन का विशालतम आकाश-झूला ‘लंदन-आई’ जो दूर से देखने पर लगता है कि रुका हुआ है, आधे घंटे में उसका एक राउंड पूरा होता है। वहाँ भी गाने वालों के अलावा बहुत से लोग कोई रूप बनाए रहते हैं। जैसे हमने देखा किसी को चार्ली-चैप्लिन बने हुए और कोई ‘गोल्डन लेडी’ ऐसे ही कई अन्य स्वरूप धरे लोग वहाँ थे।
लंदन के बाद हम स्कॉटलैंड गए, वहाँ भी एडिनबर्ग के मुख्य बाज़ार में हमको बहुत सारे लोग गाना गाते हुए, कोई स्वरूप बनाए हुए और काफी संख्या में लोग किसी विशेष प्रकार के आकर्षक ‘डॉगी’ को लेकर बैठे मिले। उनका वह कुत्ता सजा हुआ था, गॉगल्स पहने था और बड़ी बात यह कि अपने मालिक की कमाई के लिए चुपचाप बैठा हुआ था।
आज अचानक यह खयाल आ गया कि कमाई के लिए लोग यूरोप में भी अपनी कला का अथवा ऐसे किसी साधन का प्रयोग करते हैं, लेकिन भीख नहीं मांगते।
आज के लिए इतना ही।
नमस्कार।
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