ऐसे ही एक बहुत पुराने गीत की रोचक ‘अंडरस्टैंडिंग’ दिमाग में आई, फिर सोचा कि इस पुराने गीत को भी शेयर कर लेता हूँ। वैसे हिंदी फिल्म-संगीत में रुचि रखने वाला कोई ऐसा प्राणी तो मिलना मुश्किल है, जिसने यह गीत कभी न सुना हो, खास कर पुरानी पीढ़ी में!
हाँ तो, जो बात मेरे ज्ञानी मस्तिष्क में आई, वह ये है कि ‘जब दिल टूट जाता है, तब सामान्य ज्ञान किसी काम नहीं आता !’ जी हाँ इस प्रसिद्ध गीत का मुखड़ा है- ‘जब दिल ही टूट गया, हम – ‘जी के’ क्या करेंगे!
खैर यह तो मज़ाक की बात थी। ये बहुत पुराना गीत है, देश आज़ाद होने से पहले 1946 में रिलीज़ हुई फिल्म- शाहजहाँ के लिए कुंदन लाल सहगल जी का गाया यह गीत है। गीत के लेखक हैं ज़नाब मज़रूह सुल्तानपुरी साहब और इस गीत का संगीत दिया है- नौशाद अली साहब ने। यह वो ज़माना था, जब जिस अंदाज़ में सहगल साहब गाते थे, वही गाने का अंदाज़ हुआ करता था। ज़िंदगी की, गीतों की और डायलॉग डिलीवरी की भी, गति काफी धीमी हुआ करती थी, किसी को कोई जल्दी नहीं थी।
आइए इस बहुत पुराने गीत को एक बार फिर याद कर लेते हैं।
जब दिल ही टूट गया
हम जी के क्या करेंगे
जब दिल ही टूट गया।
उल्फत का दिया हमने इस दिल में जलाया था
उम्मीद के फूलों से इस घर को सजाया था,
इक भेदी लूट गया,
हम जी के क्या करेंगे।
जब दिल ही टूट गया।
मालूम ना था इतनी मुश्किल है मेरी राहें
अरमां के बहे आंसू
हसरत ने भरी आहें।
हर साथी छूट गया,
हम जी के क्या करेंगे।
जब दिल ही टूट गया।
आज अचानक यह पुराना गीत शेयर करने का मन हुआ, सो कर लिया। जो मन में आए वो कर लेना चाहिए ना!
आज के लिए इतना ही,
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