दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में चुनाव प्रक्रिया अपने अंतिम पड़ाव है। अंतिम चरण का मतदान 19 मई को होना है और कल 17 मई को प्रचार बंद हो गया। दीदी के बंगाल में तो उनके साहसिक कार्यों के कारण एक दिन पहले ही प्रचार समाप्त हो गया था।
बहुत सारे दूल्हे हैं इस बारात में, सबने सेहरे का ऑर्डर दिया हुआ है, इतना सघन प्रचार, जिसमें विष-वमन भी बहुत हुआ लेकिन मेहनत भी लोगों को बहुत करनी पड़ी है। निश्चित रूप से इस अभियान के केंद्र में तो श्री नरेंद्र मोदी ही हैं, आज देश में उनसे प्रेम करने वाले बहुत लोग हैं और नफरत करने वाले भी बहुत हैं।
पिछले चुनाव में जनता ने देश को ऐसी सरकार और विशेष रूप से ऐसा प्रधान मंत्री दिया, जिसे बड़ी संख्या में विद्वानों का समर्थन प्राप्त नहीं था, यह भी संभव है कि इस बार भी उन विद्वानों को नाराज़ ही रहना पड़े, जनता के फैसले के बारे में पहले से तो कुछ नहीं कहा जा सकता।
सचमुच चुनावी सभाओं की इस भागदौड़ के बाद नेताओं को कुछ आराम करने का तो अधिकार है, हाँ 19 को मतदान वाले क्षेत्रों में स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं को अभी सक्रिय रहना होगा।
चुनाव के दौरान देखा जाए तो मेरे विचार में श्रीमान राहुल गांधी का प्रचार सबसे अधिक नकारात्मक था, जो सीएजी और उच्चतम न्यायालय के निर्णय/रिपोर्ट के बावजूद चोर-चोर के नारे लगाते रहे, जबकि न्यायालय के कई पुराने मामले और अपराधी लोगों को देश से भगाने का इतिहास बताता है कि चोर कौन रहे हैं!
खैर जनता का निर्णय 23 मई को आ ही जाएगा, लेकिन उससे पहले 3-4 दिन का समय बहुत मनोरंजक होगा, जब 19 मई की शाम से ही सभी टीवी चैनल और अखबार अपने-अपने सर्वे के आधार पर बताएंगे कि किसकी सरकार बनने वाली है! कभी कोई सर्वे काफी हद तक सही भी साबित हो जाता है, लेकिन विशेष बात है कि सर्वे पंडितों का अपने गणित पर आधारित परिणाम बताना और नेताओं का उनके आधार पर अपनी राय देना काफी रोचक होता है।
मेरी शुभकामना है कि देश को ऐसी सरकार मिले जो देश के सर्वाधिक हित में हो।
आज के लिए इतना ही।
नमस्कार।
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