हर बात के लिए!

कुछ विज्ञापन वास्तव में बहुत सुंदर बन जाते हैं। ऐसा ही एक विज्ञापन आजकल टीवी पर आता है, शायद सारेगामा- पुराने गानों के संग्रह के बारे में, विज्ञापन में एक वृद्ध पिता घर के आंगन में अखबार पढ़ रहे हैं, उनका युवा बेटा वहाँ आता है और उनको रेडियो टाइप कुछ सौंपता हैं, जिसमें बताया जाता है कि पुराने अमर गीतों का संग्रह है, जिसे ‘सारेगामापा’ नाम दिया गया है। बेटा वह उत्पाद पिता के सामने रखकर कहता है-‘पापा ये आपके लिए’, पिता उसको देखकर फिर से अखबार पढ़ने लग जाते हैं।

इसके बाद बेटा फिर से पिता से बोलता है- “और पापा थैंक यू” , पिता पूछते हैं- “किस बात के लिए”, इस पर बेटा बोलता है- “हर बात के लिए।” इसके बाद पिता अपनी आंखों से आंसू पौंछते हैं, और रसोई से वह बेटा और उसकी मां यह देखते हैं।

ऐसे बहुत से लोग हो सकते हैं जो शांत रहकर अपना सब कुछ समर्पित करते हैं, शायद पिता नामक व्यक्ति भी ऐसा ही होता है, जो अक्सर ये बात कहता भी नहीं है, वरना जीवन में बहुत से लोग ऐसे भी होते हैं जो एक काम करते हैं तो दो का बखान  करते हैं। ऐसे में इस शांत समर्पण को समझने वाले प्राणी बहुत आवश्यक हो जाते हैैं । जैसे कि इस विज्ञापन में बेटे को सलाह देने वाली उसकी मां ही होती है, जो बेटे से ऐसा कुछ कहलवाती है कि उस वृद्ध की आंखों में आंसू आ जाते हैं।

आजकल ‘थैंक्स गिविंग डे’, ‘क्षमा याचना दिवस’ जैसे दिन मनाने का भी प्रचलन आ गया है, जिनके पीछे भावना तो बहुत अच्छी है, लेकिन व्यावहारिक रूप में ये एक औपचारिकता बनकर रह जाते हैं। जीवन में बहुत से ऐसे लोग हैं जिनकी भूमिका हमारे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण होती है। जैसे वह शिक्षक- जो हमें या हमारे बच्चों को प्राणपन से पढा‌ता है, बच्चे को अच्छे संस्कार देने भी उसका बहुत महत्वपूर्ण योगदान होता है। हम कह सकते हैं कि उसको इसके लिए वेतन मिलता है। सही बात है, लेकिन वही वेतन लेकर ऐसे भी शिक्षक होते हैं जो केवल औपचारिकता निभा देते हैं। ऐसे बहुत से लोग हो सकते हैं। अच्छे डॉक्टर, जो किसी क्रिटिकल मरीज को बचाने के लिए अपना खाना-पीना सब भूल जाते हैं। इसमें उनकी शिक्षा, योग्यता की तो भूमिका होती ही है, लेकिन कई बार समर्पण की भूमिका उससे ज्यादा होती है।

देश की रक्षा करने वाले सैनिक, नक्सलियों से जूझने वाले पुलिसकर्मी और अन्य सुरक्षाकर्मी आदि भी, यह वेतन नहीं है जो उनको अपना जीवन समर्पित करने को तैयार करता है, अपितु देशप्रेम की भावना ही है।

आज, इस विज्ञापन के बहाने ऐसे ही मन हुआ कि जो लोग समर्पित होकर, अपना सब कुछ लुटा देते हैं और जो भी पूरे तन-मन से समर्पित होकर, जो भी काम उसके जिम्मे है उसे करता है और जरूरत पड़ने पर उससे आगे बढ़कर करता है, उनके समर्पण के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की जाए, बिना इस बात पर विचार किए कि आज इसके लिए निर्धारित दिन है या नहीं।

नमस्कार।


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