आज फिर एक पुराना गीत याद आ रहा है। जैसे कि दुनिया में होता ही है और फिल्में भी तो हमारी-आपकी दुनिया का आइना ही हैं! प्रेम जीवन का और इसीलिए साहित्य का, कथा-कहानियों का भी मुख्य तत्व होता है और इसी प्रकार फिल्मों में भी प्रेम के प्रसंग और प्रेम के गीत भी प्रमुखता से स्थान पाते हैं।
हाँ तो प्रेम की अभिव्यक्ति के रूप में जहाँ प्रेम की भावनाओं का, प्रेयसी के सौंदर्य का बखान होता है वहीं प्रेम से जुड़े गीतों में बहुत सारे गीत दिल टूटने से भी जुड़े होते हैं, और साहित्य में जहाँ हृदय की बात होती है, हिंदी फिल्मों में सामान्यतः दिल आता है, और यह माना जाता है कि अक्सर उसको टूटना ही होता है।
हाँ तो आज का यह गीत नायक के ऐसे अनुभव से जुड़ा है जहाँ उसको प्रेम में ऐसी स्थितियों से गुज़रना पड़ता है कि उसे प्रेम के नाम से ही नफरत हो जाती है।
आज का यह गीत है 1966 में रिलीज़ हुई फिल्म- ‘दिल दिया दर्द लिया’ से, गीत लिखा है- शकील बदायुनी साहब ने और इसे बड़े ही प्रभावी अंदाज़ में गाया है, स्वर सम्राट- मोहम्मद रफी साहब ने।
लीजिए प्रस्तुत है आज का यह गीत-
गुज़रे हैं आज इश्क़ में हम उस मक़ाम से,
नफ़रत सी हो गई है मुहब्बत के नाम से।
हमको न ये गुमान था, ओ संगदिल सनम,
राह-ए-वफ़ा से तेरे बहक जाएंगे क़दम,
छलकेगा ज़हर भी तेरी आँखों के जाम से।
ओ बेवफ़ा तेरा भी यूँ ही टूट जाए दिल,
तू भी तड़प-तड़प के पुकारे हाय दिल,
तेरा भी सामना हो कभी, ग़म की शाम से।
हम वो नहीं जो प्यार में रोकर गुज़ार दें,
परछाईं भी हो तेरी तो ठोकर से मार दें,
वाक़िफ़ हैं हम भी ख़ूब हर एक इंतक़ाम से।
आज के लिए इतना ही,
नमस्कार।
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