कई दिन से पिछले साल के अनुभव शेयर कर रहा था, लेकिन आज जो अनुभव शेयर कर रहा हूँ वह कल का ही है।
मेरे बेटे ने ‘लंदन डे टूर’ में बुकिंग की थी जिसके अंतर्गत हमने दो महत्वपूर्ण स्थान कल देखे। सुबह 7-45 बजे की बस बुकिंग थी, हम घर से 7 बजे सुबह निकले, दो ट्यूब ट्रेन बदलने और काफी दूर तक भागने के बाद हम बस तक पहुंच पाए, क्योंकि वहाँ तक पहुंचने के टाइम की केल्कुलेशन में थोड़ी गड़बड़ हो गई थी।
खैर काफी आरामदायक बस थी, उसमें कमेंट्री करने वाला व्यक्ति भी काफी जानकारी रखने वाला था और उसकी प्रस्तुति भी काफी रोचक थी। वह जहाँ रास्ते में पड़ने वाले सभी स्थानों के बारे में बताता जा रहा था, मैं यहाँ उन दो महत्वपूर्ण स्थानों के बारे में ही बात करूंगा जो इस यात्रा के पड़ाव और प्रमुख आकर्षण थे।
जी हाँ लगभग 2 घंटे यात्रा करने के बाद हम अपने पहले पड़ाव ‘स्टोनहेंज’ पहुंचे जो प्रागैतिहासिक काल का निर्माण है, लगभग 5,000 वर्ष पुराना और विश्व धरोहरों में शामिल है। कुल मिलाकर देखा जाए तो इसमें बड़े-बड़े पत्थर के लंबे आयताकार स्लैब, कुछ खड़े और कुछ पड़े, खड़े हुए स्लैब्स के ऊपर पड़े स्लैब टिकाए गए हैं, जैसे कोई बच्चा स्ट्रक्चर बनाता है। कितने लंबे समय से प्रागैतिहासिक काल का गोलाकार रूप में बना यह ढांचा बना हुआ है। बताया जाता है कि इसका निर्माण सूर्य की गति के अनुसार किया गया है, सुबह जब सूरज उगता है तब कहाँ से दिखता है और सूर्यास्त के समय उसकी रोशनी किधर पड़ती है। यह विश्व धरोहर है और अवश्य देखने का स्थान है। यहाँ पर पुरानी झौंपड़ियों के स्वरूप भी प्रस्तुत किए गए हैं, टिकट के साथ एक वॉकी टॉकी जैसा यंत्र दिया जाता है, इसमें आप जिस स्थान पर पहुंचे हैं, उससे संबंधित बटन दबाने पर आपको उसका विवरण सुनने को मिलता है।
एक बात और कि यहाँ भेड़ें बहुत अधिक संख्या में हैं और उनको नजर न लग जाए, बहुत स्वस्थ भी दिखाई देती हैं। कमेंट्री करने वाला व्यक्ति भी विभिन्न जीवों की संख्या बता रहा था और उसके बाद उसने कहा कि भेड़ों की संख्या का अनुमान लगाना बहुत कठिन है। यहाँ अंदर एक स्थान से दूसरे पर ले जाने के लिए काफी आरामदेह बसों की व्यवस्था भी है। एक बार अवश्य देखने के लायक है।
इसके बाद हम फिर से अपनी दैनिक टूर वाली बस में बैठ गए और उद्घोषक से रोचक विवरण सुनते हुए दिन के दूसरे और अंतिम पड़ाव की तरफ आगे बढ़ने लगे। लगभग डेढ़ घंटे की यात्रा के बाद हम वहाँ पहुंचे, इस स्थान का नाम है- ‘बाथ’, जी हाँ नहाने वाला ‘बाथ’ यह नाम है इस नगर का, प्रकृति की मनोरम छटा के बीच बसा। बस से यहाँ पहुंचते समय ही पहाड़ी चढ़ाई से सामने घाटी में और उसके पार बने रॉयल निवास बहुत सुंदर लग रहे थे, जैसे अपने किसी हिल-स्टेशन में दूर घर दिखाई देते हैं, लेकिन यहाँ क्योंकि रॉयल लोगों के घर थे सो इनकी बनावट भी अतिरिक्त आकर्षक थी।
यह अत्यंत सुंदर नगर है, यहाँ आपको अनेक सुंदर रेस्टोरेंट, पब अपनी तरफ खींचते हैं, एक आइस-क्रीम की दुकान हैं जहाँ लाइन लगी रहती है क्योंकि कुछ लोग कहते हैं कि यहाँ जैसी आइस क्रीम कहीं नहीं मिलती। इमारतें अर्द्ध-गोलाकार रूप में बनी हैं और इस कारण मुहल्ले का नाम ‘सर्कस’ पड़ जाता है, (जो वास्तव में सर्किल ही है)।
सुंदर पार्क, ब्रिज, झील आदि इस नगर को और भी आकर्षित बनाते हैं। हाँ बाथ के लिए जो नेचुरल वाटर का स्रोत है, उसने तो इस नगर को यह नाम ही दिया है।
यहाँ जो रईस लोग रहते थे, उनके घरों के बारे में बताते हैं कि ये तीन मंज़िला होते हैं, अभी भी हैं। भूतल पर प्रवेश और रसोई, प्रथम तल पर ‘ड्राइंग रूम’ मेहमानों के स्वागत के लिए और द्वितीय तल में शयन- कक्ष होता था। उसके ऊपर नौकर रहते थे। मालिकों को सामान्यतः नौकर लोग कुर्सी पर बैठी स्थिति में उठाकर एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाते थे।
इस सुंदर नगर में भ्रमण का, यहाँ खाने-पीने का हमने 3 घंटे तक आनंद लिया और इसके बाद वापसी यात्रा का प्रारंभ, उद्घोषक द्वारा दी जा रही जानकारी, हंसी-मज़ाक के साथ प्रारंभ किया।
आज के लिए इतना ही,
नमस्कार।
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