75.जो हुआ ही नहीं अखबार में आ जाएगा

आज फिर से एक पुरानी ब्लॉग पोस्ट शेयर कर रहा हूँ, लीजिए प्रस्तुत है ये पुरानी ब्लॉग पोस्ट-

 

 

ज़नाब राहत इंदौरी का एक शेर याद आ रहा है जो उन्होंने किसी प्रोग्राम में पढ़ा था-

बनके इक हादसा, किरदार में आ जाएगा
जो हुआ ही नहीं, अखबार में आ जाएगा।

अब खबरों की दुनिया की क्या बात करें। आज बड़े-बड़े चैनलों पर जो पत्रकार, एंकर काम कर रहे हैं उनकी शक्ल देखने से पहले उनका चश्मा दिखाई देता है, कौन सी घटना इनके लिए महत्वपूर्ण होगी कौन सी नहीं, ये इनका प्रोग्राम देखने वाला कोई भी व्यक्ति बता सकता है, यहाँ तक कौन सी लाश पर ये देर तक बीन बजाएंगे और कौन सी हत्या या हत्याएं इनके लिए महत्वपूर्ण नहीं है! इतना ही नहीं, मोदी जी और राहुल बाबा की तरह इनके भी फैन हैं, जो इनके द्वारा किसी खबर को महत्व दिए जाने और किसी को नकारे जाने के मामले में पूरी तरह साथ रहते हैं। इस मामले में यह भी शामिल है कि कहाँ घटना हो तो वहाँ का मुख्यमंत्री ज़िम्मेदार है और कहाँ उस गरीब की कोई ज़िम्मेदारी नहीं है।

खैर, ये तो मैंने बात शुरू करने के लिए कह दिया, मैं यात्रा करना चाहता हूँ पुराने दिनों में, जब हमने नगर संवाददाताओं, पत्रकारों, छोटे-छोटे अखबार छापने वालों को शुरू-शुरू में जाना था।

शाहदरा की बात है, शायद सत्तर के दशक की, वहाँ मैं कवि-गोष्ठियां आदि सुनने के लिए जाता था, वहाँ मालूम होता था कि किसी राष्ट्रीय समाचार पत्र के नगर संवाददाता थे, उनका काम खबरें एकत्रित करना नहीं था, बल्कि ये था कि किस खबर को अखबार में जाने दिया जाए और किसको रोक दिया जाए। अक्सर आयोजक लोग कवि गोष्ठी की खबर छपवाने के लिए उनसे गुहार लगाते थे। बाद में तो इस प्रकार के आयोजनों और उनकी रिपोर्ट छपवाने की गतिविधियां मैंने स्वयं काफी कीं, जन संपर्क का काम देखा तो पत्रकारों को मित्र बनाया और कंपनी से जुड़ी बहुत सी खबरें, रिपोर्टें उनके माध्यम से छपवाईं।

आगे बढ़ने से पहले एक पत्रकार मित्र की बात बताऊं जो आगरा में एक छोटा सा अखबार छापते थे। उनके हाथ कुछ यशकामी लोग लग जाते थे या वे उनको ऐसा बना देते थे। जैसे एक कल्लू टाल वाले थे, जो लकड़ियों की एक बड़ी सी टाल चलाते थे। कमाई ठीक-ठाक थी उनकी, वे उनसे मिलते और बोलते कि देखो कल तुम मर जाओगे, लोग तुमको किस नाम से जानेंगे, ‘कल्लू टाल वाला’, तुम्हारे नाम से कुछ छाप देता हूँ अखबार में, नाम हो जाएगा। और अगर वो नहीं मानता तो ये भी बताते कि तुम्हारे खिलाफ कुछ लिख दूंगा, फिर सफाई देते फिरना। इस प्रकार वो कल्लू टालवाला चक्कर में आ जाता था और उनको कुछ दाना-पानी दे देता था।

वैसे कल्लू टालवाले के बहाने मुझे कुछ फिल्मी पात्र भी याद आ गए, एक तो ‘चमेली की शादी’ में थे ‘हैं जी’, जो ख्याति पाने के लिए राजनीति में उतरना चाहते थे और एक बेचारे थे मुकरी, जिनके छोटे से शरीर पर ‘अइयो बल्ली प्यार का दुश्मन, हाय-हाय’ जैसी लानत लगी थी!

खैर फिर से वास्तविक दुनिया के पत्रकारों पर आते हैं, देश के कुछ सुदूर स्थानों पर छोटे-छोटे अखबार छापकर ब्लैकमेल करने का धंधा भी काफी चलता रहा है, शायद आज भी कुछ स्थानों पर चलता हो। जब मैं एनटीपीसी, विंध्यनगर में था, जो मध्य प्रदेश के सीधी जिले में स्थित है, जहाँ कुंवर अर्जुन सिंह जी ने ‘चुरहट लॉटरी कांड’ को अंजाम देकर, उस क्षेत्र को ख्याति दिलाई थी।

हाँ तो इस परियोजना जब मैं था, तब वहाँ सीधी के एक सज्जन थे, जो पत्रकार कहलाते थे, वे चार पन्नों का एक अनियतकालीन अखबार निकालते थे-‘विंध्य टाइगर’। कंपनी के गेस्ट हाउस में उनको आते ही कमरा मिल जाता था, साथ में खाना और दारू भी, क्योंकि गेस्ट हाउस चलाने वाले ठेकेदार को अपनी खैरियत की चिंता थी। एनटीपीसी तो वैसे भी इलाके के बदमाश लोगों के लिए सोने का अंडा देने वाली मुर्गी थी। तो ये पत्रकार महोदय आकर ठेकेदारों से वसूली करते, धमकी देते और जिसके साथ इनकी पिछली बार पैसे को लेकर बात नहीं बनी थी, उसके खिलाफ छापकर लाया हुआ चार पृष्ठ का (छोटे आकार का) अखबार कॉलोनी और दफ्तर में अनेक स्थानों पर चिपका देते।

ऐसे लोगों को ब्लैकमेल करने के लिए तो लोग मिल ही जाते हैं। जैसे मुझे याद आ रहा है कि वहाँ नगर प्रशासन विभाग के प्रधान एक बार बने श्री रघुरमन, उनके समय में यह हुआ कि सड़कों आदि की जीवन अवधि अचानक काफी कम हो गई। इसको हमने इस रूप में जाना कि जिस प्रकार पौधों में जीवन प्रमाणित करने वाला परीक्षण ‘रमन इफेक्ट’ कहलाता है, वैसे ही सड़कों की आयु कम करने वाला परीक्षण ‘रघुरमन इफेक्ट’ है।

क्षमा करें, यह नाम अचानक याद आ गया, बहुत पुरानी बात है और ये सज्जन इंचार्ज थे, मैं कोई दोष उनको नहीं दे रहा हूँ, बस अपनी बात कहने का माध्यम उनको बना लिया, ये कोई और ‘इफेक्ट’ भी हो सकता है।

इस प्रकार एक-दो पत्रकारों के माध्यम से, जो याद आया कि छोटे स्थानों पर जो एक विशेष प्रकार की पत्रकारिता होती थी, शायद आज भी होती हो, उसकी एक बानगी प्रस्तुत की है।

आज के लिए इतना ही।

नमस्कार।

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One response to “75.जो हुआ ही नहीं अखबार में आ जाएगा”

  1. Thanks a lot.

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