आज अपनी दिल्ली को याद करने का मन हो रहा, जहाँ मेरा बचपन बीता और जहाँ मैंने शुरू की कुछ नौकरियां की थीं। मेरा जन्म वहाँ 1950 में हुआ था, जब आज़ादी के बाद दिल्ली बस रही थी, चारदीवारी वाली पुरानी दिल्ली के पार दूर-दूर तक। उस समय की एक गतिविधि जो चुनाव के समय जोर-शोर से होती थी, वह थी कि नई-नई झुग्गी-झौंपड़ी बस्तियां बस जाती थीं और उन पर राजनैतिक पार्टियों के झंडे लग जाते थे। मुख्यतः उस समय भी कांग्रेस और जनसंघ (आज की बीजेपी) होती थीं, कुछ हद तक उस समय कम्युनिस्ट भी होते थे, जो अब दिल्ली क्या लगभग पूरे देश से ही मिट चुके हैं। उस समय जो बस्तियां चुनाव के मौसम में बसती थीं, आज वे जे.जे.कालोनियां बन चुकी हैं। जिन्होंने ज्यादा मेहनत की, ज्यादा बड़े भूखंडों पर कब्ज़ा किया, वे आज अनधिकृत होने का कलंक ढोत-ढोते करोड़पति हो गए हैं, जबकि जो ईमानदारी से रहे वे आज भी अपना छोटा सा घर नहीं बना पाए हैं। राजनीति ऐसे ही चलती रही है।
आज बहुत कुछ बदल चुका है। इसमें कोई संदेह नहीं कि अब तक दिल्ली ने बहुत प्रगति की है, मैट्रो और बहुत अच्छी क्वालिटी की सड़कें। मैं शाहदरा में रहता था, जहाँ से दिल्ली को जोड़ने वाला एक ही रेल और सड़क वाला पुल था, सैंकड़ों वर्ष पुराना, जिसको पार करके असली दिल्ली में आना, समय के साथ एक जटिल कार्य हो गया था, घंटों गाड़ियां वहाँ रुकी रहती थीं, आज इतने पुल बन गए हैं कि पता ही नहीं चलता कि बीच में यमुना भी है।
दिल्ली एक फाइनेंशियली रिच कैपिटल सिटी है, अक्सर यहाँ की सरकारों की चिंता ये रही है कि बजट कहाँ खर्च करें। मैं ज्यादा लंबी बात न करते हुए सीधे शीला दीक्षित जी के 15 वर्ष के शासन का ज़िक्र करूंगा, तब तक बीजेपी और कांग्रेस के शासन कालों में दिल्ली को बहुत आधुनिक स्वरूप मिल चुका था, मैट्रो और सुंदर सड़कें, ऐसे में श्री केजरीवाल जी की दिल्ली की गद्दी पर स्थापना हुई। अब तुरंत विकास के लिए कोई बड़ा चैलेंज नहीं था और यदि था तो उस पर केजरीवाल जी ने कोई बड़ा काम नहीं किया। नए स्कूल और कॉलेज बनाने के लक्ष्य पर उन्होंने कुछ नहीं किया, फिर भी वे आज इतने लोकप्रिय हैं कि चुनाव को पूरी तरह स्वीप कर लिया। बीजेपी की पिछले चुनाव में 3 सीटें आई थीं और इस बार 8 सीटें। इससे पहले 15 वर्ष तक दिल्ली पर राज करने वाली अत्यंत लोकप्रिय मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित जी की कांग्रेस पार्टी को पिछली बार भी ‘शून्य’ मिला था और इस बार भी!
आखिर ऐसा क्या चमत्कार किया है केजरीवाल जी ने, उनका प्रचार और कार्यकर्ताओं की मेहनत तो है ही, इसके अलावा और क्या है?
एक दो पॉज़िटिव काम जो केजरीवाल जी ने किए हैं, उनका मैं पहले ज़िक्र करना चाहूंगा। एक काम तो ‘मुहल्ला क्लीनिक’ का है, जिनमें ‘आप’ के समर्पित कार्यकर्ताओं का बड़ा योगदान है। पहले भी सरकारी डिस्पेंसरी हुआ करती थीं, जो बड़े पैमाने पर ‘नॉन परफॉर्मिंग एसेट’ बन चुके थे। उन पर पैसा बर्बाद करने के स्थान पर, छोटे पैमाने पर यह सेवा इस प्रकार उपलब्ध कराने से लोगों में अच्छा संदेश गया, ये एक सच्चाई है।
एक और काम जो मेरी समझ में आता है कि इन्होंने सरकारी स्कूलों की हालत में कुछ सुधार किया, हालांकि ये नए स्कूल नहीं बना पाए, लेकिन ज्यादा बड़ी बात ये है कि शिक्षा के नाम पर धंधा चलाने वाले प्राइवेट ग्रुप्स को इन्होंने मनमाने ढंग से फीस नहीं बढ़ाने दी और आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों के लिए भी वहाँ प्रवेश को संभव बनाया।
मुझे फिलहाल ये दो ही पॉज़िटिव उपलब्धियां याद आ रही हैं, लेकिन इनके कारण वोटों में बहुत बड़ा बदलाव संभव नजर नहीं आता!
राजनीति में पार्टियों का सत्ता में आना-जाना लगा रहता है, और ये कोई बड़ी बात नहीं है। बड़ी बात ये है कि इससे पहले 15 वर्ष तक दिल्ली पर शासन करने वाली पार्टी के लगभग सभी प्रत्याशियों की जमानत ज़ब्त हो गई। जिन आधारों पर केजरीवाल जी की ‘आम आदमी पार्टी’ को इतना भारी बहुमत मिला, वास्तव में वे आधार बहुत खतरनाक दिशा का संकेत करते हैं।
अब मैं उन कारणों का उल्लेख करना चाहूंगा जो वास्तव में इस आश्चर्यजनक परिणाम का कारण रहे हैं। और विश्वास कीजिए ये सिर्फ और सिर्फ वस्तुओं और सेवाओं को मुफ्त उपलब्ध कराए जाने के कारण हुआ है।
मुझे एक बहुत पुरानी नीति-कथा याद आ रही है, ‘अंधेर नगरी’, आपको मालूम होगा इस कथा में किसी गुरूजी का शिष्य ऐसे राज्य में पहुंच जाता है जहाँ हर वस्तु ‘टके सेर’ मिलती है। चेला बहुत खुश होता है और सस्ता माल खा-खाकर मोटा हो जाता है, उसके गुरुजी उसको चेतावनी भी देते हैं। वो मुसीबत में पड़ता है और बड़ी मुश्किल से अपनी जान बचा पाता है।
सरकारें इसलिए होती हैं कि वे जनता से जो कर आदि वसूल करती हैं, उनसे वे जनता को नागरिक सुविधाएं प्रदान करें। स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़कें, रोज़गार और सभी नागरिक सुविधाएं। सरकार का यह भी दायित्व है कि जो पिछड़े हुए हैं, उनको आगे बढ़ने में सहायता प्रदान करे, उनको कुछ रियायत दे आदि-आदि।
श्रीमान केजरीवाल जी ने नया फार्मूला निकाला बिजली हॉफ, पानी माफ! लेकिन ये सुविधा किसके लिए? जैसा मैंने कहा आर्थिक अथवा सामाजिक पिछड़ेपन के आधार पर ये सुविधाएं प्रदान की जानी चाहिएं। ये किस आधार पर किया जा रहा है। अभी किसी डिबेट में ‘आप’ के एक वक्ता बोल रहे थे पत्रकारों से, आप में से भी बहुत से लोग ये सुविधा ले रहे हैं, जिनका 1-2 लोगों का परिवार है, एक टीवी, छोटा फ्रिज है, दोनो काम पर जाते हैं, उनका बिल भी ‘ज़ीरो’ आता है। लेकिन क्या यह ठीक है। जो लोग अच्छी कमाई कर रहे हैं, वो बिल का भुगतान न करे, क्योंकि खपत कम है, और इस तरह के बहुत सारे लोगों को दी गई इस ‘मुफ्तखोरी’ की सुविधा की भरपाई आखिर कौन करेगा! यह राजनीति को बहुत खतरनाक दिशा में ले जाना है।
श्री केजरीवाल जी के वोट कैचिंग प्रयासों में एक धर्म विशेष के मामले में कुछ लोगों (इमामों) को वेतन देना भी शामिल है, देश में और भी धर्म हैं सर जी, लेकिन शायद ‘सैक्युलर’ धर्म एक ही है।
केजरीवाल जी का लेटेस्ट ‘मास्टर स्ट्रोक’ मेरी निगाह में तो शर्मनाक है। महिलाओं को बस में मुफ्त यात्रा! मेरा तो ऐसा मानना था कि स्वाभिमानी महिलाएं इसे रिजेक्ट कर देंगी। आप महिलाओं को, बुज़ुर्गों को सुविधा दीजिए, लेकिन ये मुफ्तखोरी की संस्कृति क्यों विकसित कर रहे हैं। क्या महिला होने का मतलब ही गरीब होना है! कोई महिला अभी टीवी पर बोल रही थी कि उसे वैसे तो बस में नहीं जाना होता था, लेकिन ‘अब फ्री हो गया है तो घूम आती हूँ’। इस प्रकार ये अराजकता की ओर भी एक कदम है, माफ कीजिए महिलाओं में भी हर प्रकार के प्राणी होते हैं, इस सुविधा का लोग गलत किस्म के प्राणी अवश्य ही उठाना चाहेंगे। आखिर मुफ्तखोरी के इन प्रपंचों का भार भी तो भोली-भाली टैक्स देने वाली जनता को ही उठाना पड़ेगा।
केजरीवाल जी एक संपन्न राजधानी क्षेत्र में काम कर रहे हैं, जहाँ किसान भी गिने-चुने हैं। आप यहाँ ऊंची क्षतिपूर्ति की घोषणा कर सकते हैं, शहीद को एक करोड़ देकर भी नाम कमा सकते हैं। लेकिन यूपी, एमपी आदि जैसे बड़े प्रदेश अगर इस प्रकार की सुविधाओं की घोषणा करेंगे, तो वो सरकार बिक जाएगी।
यह मुफ्तखोरी की संस्कृति का ही कमाल है कि दिल्ली में दूसरी पार्टियां, मुकाबले से लगभग बाहर हो गई हैं। केजरीवाल जी की सफलता को ‘कैच’ करते हुए ममता दीदी ने भी ऐलान कर दिया कि वे बेरोज़गारी भत्ता देंगी। ऐसा ही प्रयास पिछली बार राहुल बाबा ने भी किया था, शुक्र है कि जनता ने उसे स्वीकार नहीं किया, आप रोज़गार की गारंटी दीजिए, घर बिठाकर क्यों खिलाते हैं। दीदी तो वैसे तृणमूल की तरफ से गुंडागर्दी करने के लिए भी बहुत से लोगों को रोज़गार दे सकती हैं।
मैं आखिर में यह दोहराना चाहूंगा कि केजरीवाल जी दिल्ली के परिवारों के बड़े बेटे बनना चाहते हैं, तो अवश्य बनें, लेकिन ‘मुफ्तखोरी’ की संस्कृति को बढ़ावा देकर नहीं। इसका संदेश देश में बहुत बुरा जाएगा। मुझे लगा कि आज ये बात अवश्य कहनी चाहिए, सो कह दी, बाकी तो ईश्वर मालिक है।
आज के लिए इतना ही,
नमस्कार।
******
Leave a Reply