आज फिर से एक पंजाबी गीत शेयर कर रहा हूँ, यह गीत भी श्री शिव कुमार बटालवी जी ने लिखा है, वैसे इसे लोक गीत भी कहा जाता है, संभवतः कुछ लोग लोक मन से इतना जुड़ जाते हैं कि उनके गीत को समाज अपना लेता है। इस गीत को श्री आसा सिंह मस्ताना जी ने गाया था और बचपन में मैंने अनेक बार इस गीत को सुना है।
लीजिए प्रस्तुत है ये गीत, आजकल दुनिया में महामारी फैली है, हजारों लोग इस भयावह रोग की भेंट चढ़ चुके हैं, ऐसे में अचानक जीवन की नश्वरता और दुनियादारी के ढोंग को दर्शाने वाला यह गीत याद आ रहा है, लीजिए प्रस्तुत है यह गीत-
जदों मेरी अर्थी उठा के चलणगे,
मेरे यार सब हुम हुमा के चलणगे।
चलन गे मेरे नाल दुश्मन वी मेरे,
ए वखरी ए गल, मुस्कुरा के चलणगे।
जींदे जी मैं पाइयां तन उत्ते लीरां,
मरण बाद मैंनू सजा के चलणगे।
जिन्हा दे मैं पैरां ते रुलदा रह्यां हाँ,
ओ हात्थां ते मैंनू उठा के चलणगे।
मेरे यार मोडा वटावन बहाने,
तेरे दर ते सजदा करा के चलणगे।
बिठाया जिन्हा नू मैं पलकां दी छावें,
ओह बल्दी होइ आग ते बिठा के चलणगे।
जदों मेरी अर्थी उठा के चलणगे,
मेरे यार सब हुम हुमा के चलणगे।
आज के लिए इतना ही।
नमस्कार।
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