जी भाभी जी!

आज एक संस्था अथवा गतिविधि के बारे में बात कर लेते हैं| यह गतिविधि वैसे तो बहुत जगह हो सकती है और होगी भी| इस संस्था को महिला मण्डल अथवा लेडीज क्लब कहा जाता है| मेरा इससे जुड़ा अनुभव एक औद्योगिक संस्थान का है, जहां मैं मानव संसाधन विभाग के एक अधिकारी के रूप में कार्यरत था| हमारे इस संस्थान की औद्योगिक कालोनियाँ देश के सुदूर इलाकों में होती थीं जो अत्यधिक सुंदर बनी होती थीं और इन कालोनियों में आमोद-प्रमोद हेतु चलने वाले कर्मचारियों और अधिकारियों के क्लबों के अलावा महिलाओं के लिए चलने वाले महिला मण्डल अथवा लेडीज क्लब भी होते हैं| इन महिला क्लबों के अंतर्गत सामान्यतः बच्चों की गतिविधियां भी ‘बाल भवन’ के नाम से चलाई जाती थीं| इस महिला क्लब की प्रधान होती थीं परियोजना के प्रधान की पत्नी, जो अक्सर व्यावहारिक और सामाजिक रूप से अपने पति से भी अधिक शक्तिशाली होती थी|

 

 

अक्सर कहा जाता है ‘गरीब की जोरू सबकी भाभी’, लेकिन वास्तव में इस महिला क्लब में सबकी भाभी परियोजना प्रधान की पत्नी होती थी| इसके अलावा जो अधिकारिणी किसी सीनियर अधिकारी की पत्नी होती थी वह अपने से जूनियर अधिकारी पत्नियों की भाभी होती थी| मैं क्योंकि मानव संसाधन विभाग में था और ये सभी गतिविधियां मानव संसाधन के अधिकारियों की सेवाओं के दम पर ही चलती थीं, अतः मैं और मेरे विभागाध्यक्ष इनके कार्यकलापों से पूरी तरह जुड़े थे| मेरे एक विभागाध्यक्ष अक्सर इन महिला क्लबों के नाम को लेकर भी टिप्पणी करते थे| शायद वे इस बहाने अपनी कुंठा व्यक्त करते थे| जैसे हमारे एक संस्थान के महिला क्लब का नाम था ‘सुहासिनी संघ’ अर्थात जो महिला हँसते हुए अत्यंत सुंदर लगती है! ऐसा कहकर वे कहते थे ‘और मेरी पत्नी भी इसकी सदस्य है!’, और एक नाम था ‘तन्वंगी’ (तनु अंगी) अर्थात जिसकी पतली कमर हो, ऐसा कहकर वे हँसते थे और बोलते थे कि ‘मेरी पत्नी भी इसकी सदस्य है!’

अन्य क्लबों की तरह लेडीज क्लब का भी एक भवन होता था जहां अपनी गतिविधियों और गेम्स आदि खेलने के लिए इसकी सदस्याएँ आदि जाती थीं| जो भी आवश्यकता उनको वहाँ होती थीं उनके लिए एक अधिकारी को ज़िम्मेदारी दी गई थी| जैसे एक काल्पनिक उदाहरण दे रहा हूँ, किसी कनिष्ठ सदस्या ने मानव संसाधन विभाग के इस अधिकारी से कहा कि क्लब भवन में झाडू देने के लिए एक सफाई कर्मचारी पर्याप्त नहीं है, दो भेजे जाएँ| उस अधिकारी ने कहा की दो लोग भेजना संभाव नहीं है, एक से ही काम चलाएं| अब इस कनिष्ठ महिला के पास एक अवसर था बड़ी भाभी जी तक अपनी बात पहुंचाने का! वह गई और बोली- “भाभी जी, एच आर वाले भैया से मैंने दो स्वीपर भेजने के लिए कहा तो वो बोले कि एक से ही काम चलाओ’| इस पर बड़ी भाभी जी, जो अपनी शक्ति के लिए प्रसिद्ध थीं बोलीं ‘तू रुक जा, मैं इसके बॉस से ही झाड़ू लगवाऊंगी’|

ये मैंने कुछ बानगी दिखाई महिला क्लब की, बहुत सी महिलाएं अपने पतियों की पदोन्नति के लिए भी बड़ी भाभी जी को प्रसन्न किया करती थीं और कुछ के पतियों को  अपनी पत्नियों के व्यवहार का भी दंड भुगतना पड़ता था|

ये मैंने संक्षेप में एक औद्योगिक संस्थान जुड़े अपने अनुभव बताए, मैं जानता हूँ यह गतिविधि सभी जगह होती है जहां अधिकारी-कर्मचारी एक साथ कालोनी में रहते हैं, फोर्स से जुड़ी कालोनियों में तो यह क्लब और भी शक्तिशाली होता होगा, ऐसा लगता है|

बाद में अगर मन हुआ तो और भी लिखूंगा इस विषय में, आज के लिए इतना ही|

नमस्कार|

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5 responses to “जी भाभी जी!”

  1.  उत्कृष्ट लेखन का बेहतरीन उदाहरण , आपका लेख पढ़कर मन को प्रशन्नता प्राप्त हुयी

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    1. Thanks a lot Pushpendra Ji.

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  2. Bahut acche blog posts hai aapke

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    1. Thanks a lot ji.

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