आज मैं हिन्दी काव्य मंचों के ओजस्वी कवि स्वर्गीय रामावतार त्यागी जी का एक अत्यंत प्रभावशाली गीत प्रस्तुत कर रहा हूँ| त्यागी जी जुझारूपन से भरे गीतों के लिए प्रसिद्ध रहे हैं, परंतु यह अत्यंत रूमानी और भावपूर्ण गीत है|
लीजिए इस गीत का आनंद लीजिए-
प्रश्न किया है मेरे मन के मीत ने,
मेरा और तुम्हारा क्या संबंध है|
वैसे तो संबंध कहा जाता नहीं
व्यक्त अगर हो जाए तो नाता नहीं,
किन्तु सुनो लोचन को ढाँप दुकूल से
जो संबंध सुरभि का होता फूल से,
मेरा और तुम्हारा वो संबंध है|
मेरा जन्म दिवस ही जग का जन्म है,
मेरे अन्त दिवस पर दुनिया खत्म है,
आज बताता हूँ तुमको ईमान से
जो संबंध कला का है इंसान से,
मेरा और तुम्हारा वो संबंध है|
मैं न किसी की राजनीति का दाँव हूँ
दे दो जिसको दान न ऐसा गाँव हूँ,
झूठ कहूँगा तो कहना किस काम का
जो संबंध प्रगति का और विराम का,
मेरा और तुम्हारा वो संबंध है|
करता हूँ मैं प्यार सुनाता गीत हूँ
जीवन मेरा नाम सृजन का मीत हूँ,
और निकट आ जाओ सुनो न दूर से
जो संबंध स्वयंवर का सिन्दूर से,
मेरा और तुम्हारा वो संबंध है|
मैं रंगीन उमंगों का समुदाय हूँ
सतरंगी गीतों का एक निकाय हूँ,
और कहूँ क्या तुम हो रहे उदास से
जो संबंध समर्पण का विश्वास से,
मेरा और तुम्हारा वो संबंध है|
प्रश्न किया मेरे मन के मीत ने
मेरा और तुम्हारा क्या संबंध है|
आज के लिए इतना ही|
नमस्कार|
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