आज मैं हिन्दी बहुत प्यारे कवि/ गीतकार स्वर्गीय बाल स्वरूप राही जी की एक गजल प्रस्तुत कर रहा हूँ| राही जी ने बहुत अच्छे गीत और गज़लें हमें दी हैं| आज की ये गजल भी आशा है आपको पसंद आएगी-
उनके वादे कल के हैं,
हम मेहमाँ दो पल के हैं ।
कहने को दो पलकें हैं,
कितने सागर छलके हैं ।
मदिरालय की मेज़ों पर,
सौदे गंगा जल के हैं ।
नई सुबह के क्या कहने,
ठेकेदार धुँधलके हैं ।
जो आधे में छूटी हम,
मिसरे उसी ग़ज़ल के हैं ।
बिछे पाँव में क़िस्मत है,
टुकड़े तो मखमल के हैं ।
रेत भरी है आँखों में,
सपने ताजमहल के हैं ।
क्या दिमाग़ का हाल कहें,
सब आसार खलल के हैं ।
सुने आपकी राही कौन,
आप भला किस दल के हैं ।
आज के लिए इतना ही|
नमस्कार|
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