आज डॉ धर्मवीर भारती जी की एक रचना शेयर कर रहा हूँ| भारती जी ने कविता, कहानी, उपन्यास आदि सभी विधाओं में अपना बहुमूल्य योगदान किया था| उनकी कुछ रचनाएँ- सूरज का सातवाँ घोडा, अंधा युग, ठंडा लोहा, ठेले पर हिमालय, सात गीत वर्ष आदि काफी प्रसिद्ध रहीं| वे साप्ताहिक पत्रिका- धर्मयुग के यशस्वी संपादक भी रहे|
लीजिए प्रस्तुत है भारती जी की यह रचना-
मैं क्या जिया ?
मुझको जीवन ने जिया –
बूँद-बूँद कर पिया, मुझको
पीकर पथ पर ख़ाली प्याले-सा छोड़ दिया|
मैं क्या जला?
मुझको अग्नि ने छला –
मैं कब पूरा गला, मुझको
थोड़ी-सी आँच दिखा दुर्बल मोमबत्ती-सा मोड़ दिया|
देखो मुझे
हाय मैं हूँ वह सूर्य
जिसे भरी दोपहर में
अँधियारे ने तोड़ दिया !
आज के लिए इतना ही,
नमस्कार|
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