
कैफी आज़मी साहब की एक गजल आज याद आ रही है| कैफी साहब हिंदुस्तान के एक प्रसिद्ध शायर रहे हैं और बहुत सी सुंदर रचनाएँ उन्होंने हमें दी हैं, फिल्मों में भी उनकी बहुत सी रचनाओं का इस्तेमाल किया गया और आज जो गज़ल मैं शेयर कर रहा हूँ उसको जगजीत सिंह साहब ने गाया है|
सचमुच जीवन में बहुत सी स्थितियाँ ऐसी होती हैं जिनको इंसान दूसरों के सामने नहीं रख पाता, आज के भागते-दौड़ते समाज में बहुत सी बार तो कोई इंसान मर जाता है, बहुत से मामलों में आत्म-हत्या कर लेता है, तब लोगों को महसूस होता है की उसके जीवन में शायद कोई गंभीर समस्या थी|
लीजिए आज इस खूबसूरत गजल का आनंद लेते हैं-
कोई ये कैसे बताए कि वो तन्हा क्यों हैं,
वो जो अपना था वही और किसी का क्यों हैं,
यही दुनिया है तो फिर ऐसी ये दुनिया क्यों हैं,
यही होता है तो आखिर यही होता क्यों हैं!
एक ज़रा हाथ बढ़ा, दे तो पकड़ लें दामन,
उसके सीने में समा जाये हमारी धड़कन,
इतनी क़ुर्बत हैं तो फिर फ़ासला इतना क्यों हैं!
दिल-ए-बरबाद से निकला नहीं अब तक कोई,
एक लुटे घर पे दिया करता है दस्तक कोई,
आस जो टूट गयी, फिर से बंधाता क्यों है!
तुम मसर्रत का कहो या इसे ग़म का रिश्ता,
कहते हैं प्यार का रिश्ता हैं जनम का रिश्ता,
हैं जनम का जो ये रिश्ता तो बदलता क्यों हैं!
आज के लिए इतना ही,
नमस्कार|
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