भिक्षुक हृदय – रवीन्द्रनाथ ठाकुर

आज, मैं फिर से भारत के नोबल पुरस्कार विजेता कवि गुरुदेव रवींद्र नाथ ठाकुर की एक और कविता का अनुवाद प्रस्तुत कर रहा हूँ। यह उनकी अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित जिस कविता का भावानुवाद है, उसे अनुवाद के बाद प्रस्तुत किया गया है। मैं अनुवाद के लिए अंग्रेजी में मूल कविताएं सामान्यतः ऑनलाइन उपलब्ध काव्य संकलन- ‘PoemHunter.com’ से लेता हूँ। लीजिए पहले प्रस्तुत है मेरे द्वारा किया गया उनकी कविता ‘Beggarly Heart’ का भावानुवाद-


गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर की कविता


भिक्षुक हृदय


जब मेरा हृदय कठोर और शुष्क हो गया हो,
तब मेरे ऊपर दया की वृष्टि करते हुए आना|

जब जीवन से कृपा लुप्त हो गई हो,
तब एक गीत की गूंज के साथ आना|

जब काम की आपाधापी मुझे पूरी तरह, बाहरी जगत से काट दे,
तब मेरे पास आना, मौन के देवता, अपनी शांति और चैन के साथ|


जब मेरा भिक्षुक हृदय सिर झुकाकर बैठा हो, बंद कमरे के एक कोने में,
तब मेरे सम्राट, द्वार तोड़कर अंदर, एक सम्राट की आनबान के साथ आना|

जब कामनाएँ मुझे अंधा कर दें, मायाजाल और धूल फैलाकर, ओ मेरे पवित्र प्रभु,
सबको जागृत करने वाले, अपने प्रकाश और गर्जना के साथ आना|


-रवींद्रनाथ ठाकुर



और अब वह अंग्रेजी कविता, जिसके आधार पर मैं भावानुवाद प्रस्तुत कर रहा हूँ-




Beggarly Heart


When the heart is hard and parched up,
come upon me with a shower of mercy.

When grace is lost from life,
come with a burst of song.

When tumultuous work raises its din on all sides shutting me out from
beyond, come to me, my lord of silence, with thy peace and rest.


When my beggarly heart sits crouched, shut up in a corner,
break open the door, my king, and come with the ceremony of a king.

When desire blinds the mind with delusion and dust, O thou holy one,
thou wakeful, come with thy light and thy thunder


-Rabindranath Tagore

आज के लिए इतना ही,
नमस्कार|


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