हिमगिरि विशाल, गिरिवर विशाल!

एक बार फिर से मैं आज राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत, राष्ट्र वंदना की रचनाएं लिखने वाले स्वर्गीय सोहनलाल द्विवेदी जी की एक राष्ट्रप्रेम से ओतप्रोत कविता शेयर कर रहा हूँ| उनकी गांधी जी के लिए लिखी गई कविता- ‘चल पड़े जिधर दो डग मग में’ बहुत प्रसिद्ध हुई और राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम हेतु उन्होंने अपनी प्रेरक कविताओं का योगदान किया था|

लीजिए आज प्रस्तुत है स्वर्गीय सोहनलाल द्विवेदी जी की पर्वतराज हिमालय के विषय में लिखी गई यह कविता–

यह है भारत का शुभ्र मुकुट
यह है भारत का उच्च भाल,
सामने अचल जो खड़ा हुआ
हिमगिरि विशाल, गिरिवर विशाल
!

कितना उज्ज्वल, कितना शीतल
कितना सुन्दर इसका स्वरूप?
है चूम रहा गगनांगन को
इसका उन्नत मस्तक अनूप!

है मानसरोवर यहीं कहीं
जिसमें मोती चुगते मराल,
हैं यहीं कहीं कैलास शिखर
जिसमें रहते शंकर कृपाल!

युग युग से यह है अचल खड़ा
बनकर स्वदेश का शुभ्र छत्र!
इसके अँचल में बहती हैं
गंगा सजकर नवफूल पत्र!

इस जगती में जितने गिरि हैं
सब झुक करते इसको प्रणाम,
गिरिराज यही, नगराज यही
जननी का गौरव गर्व–धाम!

इस पार हमारा भारत है,
उस पार चीन–जापान देश
मध्यस्थ खड़ा है दोनों में
एशिया खंड का यह नगेश!

आज के लिए इतना ही,
नमस्कार|
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