अपने सेवाकाल के दौरान मुझे, कवि सम्मेलनों का आयोजन करने के कारण हिन्दी के अनेक श्रेष्ठ कवियों/ गीतकारों के संपर्क में आने का अवसर मिला| आज उनमें से ही एक श्रेष्ठ नवगीतकार पटना के श्री सत्यनारायण जी का एक गीत शेयर कर रहा हूँ| सत्यनारायण जी पटना में शत्रुघ्न सिन्हा जी के पडौसी और मित्र भी हैं और मेरे लिए भी वे बड़े भाई के समान हैं, यद्यपि उनसे मिले अब तो बहुत लंबा समय हो गया है| कवि सम्मेलनों का स्तरीय संचालन करना भी सत्यनारायण जी की विशेषता है|
लीजिए आज प्रस्तुत है श्री सत्यनारायण जी का यह नवगीत जिसमें उन्होंने छोटी बच्ची से संवाद के बहाने से कितनी सुंदर भावाभिव्यक्ति दी है–

अरी अक्षरा
तू है बढ़ी उम्र का
गीत सुनहरा
मेरे उजले केश
किंतु, इनसे उजली
तेरी किलकारी
तेरे आगे
फीकी लगती
चाँद-सितारों की उजियारी
कौन थाह पाएगा
बिटिया
यह अनुराग
बड़ा है गहरा
तू हँसती है
झिलमिल करती
आबदार मोती की लड़ियाँ
तेरी लार-लपेटी बोली
छूट रहीं
सौ-सौ फुलझड़ियाँ
ये दिन हैं
खिलने-खुलने के
इन पर कहाँ
किसी का पहरा
होंठों पर
उग-उग आते हैं
दूध-बिलोये अनगिन आखर
कितने-कितने
अर्थ कौंधते
गागर में आ जाता सागर
मैं जीवन का
वर्ण आखिरी
तू मेरा
अनमोल ककहरा ।
आज के लिए इतना ही,
नमस्कार|
********
Leave a Reply