कभी-कभी बहुत भला लगता है!

आज मैं हिन्दी के श्रेष्ठ कवि एवं नवगीतकार स्वर्गीय उमाकांत मालवीय जी का एक नवगीत शेयर कर रहा हूँ, ये एक प्रसिद्ध कवि थे और मैंने इनकी रचनाएं पहले भी शेयर की हैं|

लीजिए प्रस्तुत है स्वर्गीय उमाकांत मालवीय जी की यह रचना-

कभी-कभी बहुत भला लगता है —
चुप-चुप सब कुछ सुनना
और कुछ न बोलना ।

कमरे की छत को
इकटक पड़े निहारना
यादों पर जमी धूल को महज़ बुहारना
कभी-कभी बहुत भला लगता है —
केवल सपने बुनना
और कुछ न बोलना ।


दीवारों के उखड़े
प्लास्टर को घूरना
पहर-पहर सँवराती धूप को बिसूरना
कभी-कभी बहुत भला लगता है —
हरे बाँस का घुनना
और कुछ न बोलना ।

काग़ज़ पर बेमानी
सतरों का खींचना
बिना मूल नभ छूती अमरबेल सींचना
कभी-कभी बहुत भला लगता है
केवल कलियाँ चुनना
और कुछ न बोलना ।


अपने अन्दर के
अन्धियारे में हेरना
खोई कोई उजली रेखा को टेरना
कभी-कभी बहुत भला लगता है
गुम-सुम सब कुछ गुनना
और कुछ न बोलना ।

(आभार- एक बात मैं और बताना चाहूँगा कि अपनी ब्लॉग पोस्ट्स में मैं जो कविताएं, ग़ज़लें, शेर आदि शेयर करता हूँ उनको मैं सामान्यतः ऑनलाइन उपलब्ध ‘कविता कोश’ अथवा ‘Rekhta’ से लेता हूँ|)

आज के लिए इतना ही,

नमस्कार| 

                            ********

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s

%d bloggers like this: