मनुष्य पर कविताएं- रवींद्रनाथ ठाकुर

आज फिर से पुरानी ब्लॉग पोस्ट को दोहराने का दिन है, लीजिए प्रस्तुत है यह पोस्ट|

आज मैं फिर से भारत के नोबल पुरस्कार विजेता कवि गुरुदेव रवींद्र नाथ ठाकुर की एक और कविता का अनुवाद प्रस्तुत कर रहा हूँ। यह उनकी अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित जिस कविता का भावानुवाद है, उसे अनुवाद के बाद प्रस्तुत किया गया है। मैं अनुवाद के लिए अंग्रेजी में मूल कविताएं सामान्यतः ऑनलाइन उपलब्ध काव्य संकलन- ‘PoemHunter.com’ से लेता हूँ। लीजिए पहले प्रस्तुत है मेरे द्वारा किया गया उनकी कविता ‘Poems on Man’ का भावानुवाद-

गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर की कविता


मनुष्य पर कविताएं!

मनुष्य जाता है, कोलाहल से भरी भीड़ में,
अपनी चुप्पी के शोर को डुबो देने के लिए।
मनुष्य अमर है, इसलिए उसका अनंत बार मरना जरूरी है।
क्योंकि जीवन एक सृजनात्मक विचार है;
यह अपने आपको, बदलते स्वरूपों में ही पा सकता है।
मनुष्य की स्थायी प्रसन्नता कुछ पाने में निहित नहीं है,
अपितु यह प्राप्त होगी, स्वयं को अपने से बड़ी सत्ता को, समर्पित कर देने में,
ऐसे विचारों के लिए, जो उसके वैयक्तिक जीवन से अधिक व्यापक हैं,
विचार- उसके देश का,
मनुष्यता का,
ईश्वर का।

-रवींद्रनाथ ठाकुर


और अब वह अंग्रेजी कविता, जिसके आधार मैं भावानुवाद प्रस्तुत कर रहा हूँ-

Poems on Man

Man goes into the noisy crowd
to drown his own clamour of silence.
Man is immortal; therefore he must die endlessly.
For life is a creative idea;
it can only find itself in changing forms.
Man’s abiding happiness is not in getting anything
but in giving himself up to what is greater than himself,
to ideas which are larger than his individual life,
the idea of his country,
of humanity,
of God.


-Rabindranath Tagore
नमस्कार।

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