आज एक बार फिर मैं किसी ज़माने में कविता में अपने अनूठे अंदाज़ के कारण घूम मचाने वाले स्वर्गीय बलबीर सिंह ‘रंग’ जी का एक गीत शेयर कर रहा हूँ|
लीजिए प्रस्तुत है स्वर्गीय बलबीर सिंह ‘रंग’ जी का यह गीत-

सत्य नहीं होता सपना है।
सपनों में लाखों आते हैं,
जो मन वीणा पर गाते हैं;
पर सोचो,
समझो, पहचानो;
उनमें कौन-कौन अपना है?
सत्य नहीं होता सपना है।
सपनों में अनगिन जग रचते,
पर कितनों की हम सुधि रखते;
फिर भी मोह,
हमें सपनों से;
यह भी तो केवल सपना है?
सत्य नहीं होता सपना है।
जिसका सपना टूट न जाये,
जिसका अपना छूट न जाये;
ऐसा किसे-
हुआ सपना है,
ऐसा मिला किसे अपना है?
सत्य नहीं होता सपना है।
आज के लिए इतना ही, नमस्कार|
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