
भूल बैठी वो निगाह-ए-नाज़ अहद-ए-दोस्ती,
उसको भी अपनी तबीअ’त का समझ बैठे थे हम|
फ़िराक़ गोरखपुरी
A sky full of cotton beads like clouds
भूल बैठी वो निगाह-ए-नाज़ अहद-ए-दोस्ती,
उसको भी अपनी तबीअ’त का समझ बैठे थे हम|
फ़िराक़ गोरखपुरी
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