
कान बजते हैं मोहब्बत के सुकूत-ए-नाज़ को,
दास्ताँ का ख़त्म हो जाना समझ बैठे थे हम|
फ़िराक़ गोरखपुरी
A sky full of cotton beads like clouds
कान बजते हैं मोहब्बत के सुकूत-ए-नाज़ को,
दास्ताँ का ख़त्म हो जाना समझ बैठे थे हम|
फ़िराक़ गोरखपुरी
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