लीजिए आज एक बार फिर में हिन्दी गीत के सिरमौर स्वर्गीय हरिवंशराय बच्चन जी का एक गीत शेयर कर रहा हूँ| बच्चन जी की बहुत सी रचनाएं मैंने पहले भी शेयर की हैं|
लीजिए आज प्रस्तुत है स्वर्गीय बच्चन जी का यह गीत, जिसमें उन्होंने संध्या डूबने का बड़ा सुंदर चित्र प्रस्तुत किया है –

चल बसी संध्या गगन से!
क्षितिज ने ली साँस गहरी
और संध्या की सुनहरी
छोड़ दी सारी, अभी तक था जिसे थामे लगन से!
चल बसी संध्या गगन से!
हिल उठे तरु-पत्र सहसा,
शांति फिर सर्वत्र सहसा
छा गई, जैसे प्रकृति ने ली विदा दिन के पवन से!
चल बसी संध्या गगन से!
बुलबुलों ने पाटलों से,
षट्पदों ने शतदलों से
कुछ कहा–यह देख मेरे गिर पड़े आँसू नयन से!
चल बसी संध्या गगन से!
(आभार- एक बात मैं और बताना चाहूँगा कि अपनी ब्लॉग पोस्ट्स में मैं जो कविताएं, ग़ज़लें, शेर आदि शेयर करता हूँ उनको मैं सामान्यतः ऑनलाइन उपलब्ध ‘कविता कोश’ अथवा ‘Rekhta’ से लेता हूँ|)
आज के लिए इतना ही,
नमस्कार|
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