आज एक पुरानी ब्लॉग पोस्ट दोहरा रहा हूँ|
फिल्म-संबंध, जो 1969 में रिलीज़ हुई थी, उसका एक गीत आज प्रस्तुत कर रहा हूँ| यह गीत श्रेष्ठ कवि प्रदीप जी ने लिखा है जो राष्ट्रीय भावनाओं से ओत-प्रोत कविताएं लिखते थे, जैसे ‘आओ बच्चे तुम्हें दिखाएँ झांकी हिंदुस्तान की’ आदि-आदि| आज के इस गीत के लिए संगीत दिया है ओ पी नैयर जी का और इसे गाया है मेरे प्रिय गायक- मुकेश जी ने|
इस गीत में एक जीवन जीने का महत्वपूर्ण सिद्धान्त दर्शाया गया है, जैसा गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर जी ने भी लिखा था, ‘जदि तोर डाक सुनी केऊ न आशे, तबे एकला चलो रे’| इस गीत में भी यही कहा गया है की हजारों मील लंबे रास्ते हमारी प्रतीक्षा कर रहे हैं और हमें अकेले ही इन पर चलाने का साहस करना होगा|
लीजिए इस गीत का स्मरण कराते हैं-

चल अकेला, चल अकेला, चल अकेला,
तेरा मेला पीछे छूटा, राही चल अकेला|
हजारों मील लम्बे रास्ते तुझको बुलाते,
यहाँ दुखड़े सहने के वास्ते तुझको बुलाते,
है कौन सा वो इंसान यहाँ पर जिसने दुःख ना झेला|
चल अकेला…
तेरा कोई साथ ना दे तो खुद से प्रीत जोड़ ले,
बिछौना धरती का कर ले अरे आकाश ओढ़ ले,
यहाँ पूरा खेल अभी जीवन का तूने कहाँ है खेला|
चल अकेला, चल अकेला, चल अकेला,
तेरा मेला पीछे छूटा राही चल अकेला|
आज के लिए इतना ही,
नमस्कार|
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