
शब-ए-इंतिज़ार आख़िर कभी होगी मुख़्तसर भी,
ये चराग़ बुझ रहे हैं मिरे साथ जलते जलते|
कैफ़ी आज़मी
A sky full of cotton beads like clouds
शब-ए-इंतिज़ार आख़िर कभी होगी मुख़्तसर भी,
ये चराग़ बुझ रहे हैं मिरे साथ जलते जलते|
कैफ़ी आज़मी
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