आज फिर से पुरानी ब्लॉग पोस्ट को दोहराने का दिन है, लीजिए प्रस्तुत है यह पोस्ट|
आज मैं फिर से भारत के नोबल पुरस्कार विजेता कवि गुरुदेव रवींद्र नाथ ठाकुर की एक और कविता का अनुवाद प्रस्तुत कर रहा हूँ। यह उनकी अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित जिस कविता का भावानुवाद है, उसे अनुवाद के बाद प्रस्तुत किया गया है। मैं अनुवाद के लिए अंग्रेजी में मूल कविताएं सामान्यतः ऑनलाइन उपलब्ध काव्य संकलन- ‘PoemHunter.com’ से लेता हूँ।
लीजिए पहले प्रस्तुत है मेरे द्वारा किया गया उनकी कविता ‘The Sun Of The First Day’ का भावानुवाद-

गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर की कविता
पहले दिन का सूरज
पहले दिन के सूरज ने
पूछा एक प्रश्न
प्रकट हुए जीवन के एक नए स्वरूप से –
कौन हो तुम?
कोई उत्तर नहीं मिला
बरसों-बरस बीतते गए।
अंतिम दिन के सूरज ने पूछा
बिल्कुल वही प्रश्न
पश्चिमी समुद्र के तट पर
शाम के सन्नाटे में-
कौन हो तुम?
फिर से कोई उत्तर नहीं आया।
-रवींद्रनाथ ठाकुर
और अब वह अंग्रेजी कविता, जिसके आधार मैं भावानुवाद प्रस्तुत कर रहा हूँ-
The Sun Of The First Day
The sun of the first day
Put the question
To the new manifestation of life-
Who are you?
There was no answer.
Years passed by.
The last sun of the last day
Uttered the question
on the shore of the western sea
In the hush of evening-
Who are you?
No answer came again.
-Rabindranath Tagore
नमस्कार।
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