
शाम-ए-अलम ढली तो चली दर्द की हवा,
रातों की पिछ्ला पहर है और हम हैं दोस्तो|
मुनीर नियाज़ी
A sky full of cotton beads like clouds
शाम-ए-अलम ढली तो चली दर्द की हवा,
रातों की पिछ्ला पहर है और हम हैं दोस्तो|
मुनीर नियाज़ी
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