लंबे समय के बाद उत्तर प्रदेश और लखनऊ में फिर से जाना हुआ, जहां 10 वर्ष तक मेरा आवास था| यात्रा से जुड़ी ब्लॉग पोस्ट भी लंबे समय के बाद लिख रहा हूँ|
मेरा बड़ा बेटा और बहू लंदन से आए, उन्होंने ही अग्रिम रूप से, सबकी एक साथ काशी यात्रा की योजना बनाई हुई थी, जिसमें मैं, मेरी पत्नी, बेटा-बहू और बेटे के सास-ससुर भी शामिल थे, और वाराणसी के बाद मेरे और मेरी पत्नी के 3 दिन लखनऊ प्रवास की भी व्यवस्था थी, जिसमें से एक दिन हमने अयोध्या भ्रमण का भी रख लिया था|

पहले जब एनटीपीसी विंध्यनगर में था तब कई बार वाराणसी जाना होता था और विश्वनाथ मंदिर के दर्शन भी पहली बार, वहाँ रहते हुए श्री नितिन मुकेश जी के साथ किए थे, जिनको मैं एक कार्यक्रम के लिए वाराणसी एयरपोर्ट से लेने गया था| तब मंदिर जाने का रास्ता बड़ी संकरी गली से होकर था, अब तो प्रभु के पास महल जैसा आवास है, जिसमें कई प्रवेश द्वार हैं| और भक्तों की लाइन भी सड़क पर बहुत दूर तक लगी थी, पता नहीं कि यदि हम ‘सुगम दर्शन’ संबंधी भुगतान करके इस सुविधा का लाभ नहीं उठाते तो कितना टाइम हमें दर्शन में लग जाता| इस सुविधा का लाभ उठाने वालों की भी अच्छी खासी भीड़ थी|
पहले दिन हम बहुत सुबह गोवा से चलकर मुंबई होकर जाने वाली फ्लाइट से वाराणसी हवाई अड्डे और वहाँ से दोपहर में, वाराणसी कैंट स्थित क्लार्क होटल पहुंचे और कुछ समय आराम करने के बाद शाम को घूमने निकले| शाम को ‘नमो घाट’ से हमने अपने भ्रमण का प्रारंभ किया जो काफी सुंदर घाट है, वहाँ की ‘लैमन टी’ भी एक विशेष आकर्षण है, चाय का वह स्वाद बहुत अलग और अच्छा है| नमो घाट से नौका करके विभिन्न घाटों से होते हुए हमारा दशाश्वमेघ घाट के बगल मे ‘राजेन्द्र प्रसाद घाट’ जाने का प्रोग्राम था, जहां पहुँचने पर शाम की ‘गंगा आरती’ में शामिल होना था|

यहाँ एक घटना ऐसी हुई जिसमें मेरी साँसे अटक गईं थीं| दशाश्वमेघ घाट पहुँचने के बाद नौका चालक ने नाव किनारे पर लगाई, नाव का अगला हिस्सा काफी उठा हुआ था, जिस पर उसने एक पटरा लगा दिया और सबसे उस पर होकर उतरने के लिए कहा| मुझे ‘हाई एंगजाइटी’ है अर्थात ऊंचाई पर मुझे डर लगता है| वहाँ बगल में एक नाव थी जिसका अगला किनारा ऐसी ऊंचाई वाला था, जिस पर से मैं जंप लगाकर नीचे उतर सकता था| मैंने कहा कि इस नाव से आप अपनी नाव सटा दो, मैं उस पर होकर उतर जाऊंगा| फिर जैसे ही मैंने नाव की ऊंची मुंडेर पर लेटकर दूसरी नाव की मुंडेर पर अपना पैर रखा, वह नाव अचानक दूर होने लगी और मेरे पैर जितने फैल सकते थे फैल गए, बस मेरा नीचे गिरना ही बाकी था| उसके बाद सभी के सम्मिलित प्रयास से और सबसे अधिक ईश्वर कृपा से उस नाव को पास लाया जा सका, और मैं उस दूसरी नाव से होकर, उसके किनारे से जंप लगाकर सुरक्षित गंगा तट पर आ गया|

काफी समय इसके बाद मुझे अपनी साँसों को संयत करने में लगा, इसके बाद इत्तफाक से हमें ‘गंगा आरती स्थल’ पर एक चबूतरे पर बैठने का मौका मिल गया और हमने वाराणसी के इस दिव्य आकर्षण ‘गंगा आरती’ में श्रद्धा पूर्वक भाग लिया|
गंगा आरती के बाद उस घाट से बाहर निकलकर हमने वहाँ के बाजार में चाट की एक प्रसिद्ध दुकान से चाट का आनंद लिया, फिर भोजन किया और रात्रि विश्राम के लिए वापस होटल पहुँच गए|
आगे का प्रसंग बाद में|
नमस्कार|
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