आज मैं श्री अनूप अशेष जी का एक नवगीत शेयर कर रहा हूँ| ग्रामीण परिवेश को लेकर अनूप जी ने बहुत अच्छे गीत लिखे हैं|
लीजिए आज प्रस्तुत है श्री अनूप अशेष जी का यह गीत –

आम के हैं पेड़ बाबा
पिता फल
नाती टिकोरे हैं ।
भात में है दूध
रोटी में रहे घी,
पोपले मुँह की
असीसें
हम रहे हैं जी ।
नीम की हैं छाँह बाबा
खाटें अपनी
रहे जोरे हैं ।
खेल में घुटने
दुकानों रहे खीसे,
मीठी गोली
बात में बादाम-से पीसे ।
शाम की ठंडई बाबा
धूप दिन के
रहे घोरे हैं ।
भूख की कोरों में गीले
फूल में सरसों,
पिता में कुछ ढूँढ़ते
जैसे रहे बरसों ।
खेतों की हैं मेंड़ बाबा
धान-गंधों
रहे बोरे हैं ।
(आभार- एक बात मैं और बताना चाहूँगा कि अपनी ब्लॉग पोस्ट्स में मैं जो कविताएं, ग़ज़लें, शेर आदि शेयर करता हूँ उनको मैं सामान्यतः ऑनलाइन उपलब्ध ‘कविता कोश’ अथवा ‘Rekhta’ से लेता हूँ|)
आज के लिए इतना ही,
नमस्कार|
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