लीजिए आज एक बार फिर से मैं, मेरे लिए बड़े भाई और गुरू जैसा दर्जा रखने वाले, पारंपरिक गीत और नवगीत दोनों के एक प्रमुख हस्ताक्षर रहे स्वर्गीय डॉक्टर कुँवर बेचैन जी का एक गीत शेयर कर रहा हूँ| डॉक्टर बेचैन जी के कुछ गीत मैंने पहले भी शेयर की हैं|
लीजिए आज प्रस्तुत है स्वर्गीय डॉक्टर कुँवर बेचैन जी का यह नवगीत –

दिवस खरीदे मजदूरी ने
मजबूरी ने रात
शाम हुई नीलाम थकन को
कुंठाओं को प्रात
जिंदगी अपनी नहीं रही ।
काली सड़कों पर पहरा है
अनजाने तम का
नभ में डरा डरा रहता है
चंदा पूनम का
नभ के उर में
चुभी कील-सी
तारों की बारात
कौन सी पीड़ा नहीं सही ?
जिंदगी अपनी नहीं रही।
रोज तीर सी चुभ जाती है
पहली सूर्य-किरन
सूरज
शेर बना फिरता है
मेरे प्राण हिरन
कर जाती है
धूप निगोड़िन
पल-पल पर आघात
जिंदगी आँसू बनी वही।
जिंदगी अपनी नहीं रही।
(आभार- एक बात मैं और बताना चाहूँगा कि अपनी ब्लॉग पोस्ट्स में मैं जो कविताएं, ग़ज़लें, शेर आदि शेयर करता हूँ उनको मैं सामान्यतः ऑनलाइन उपलब्ध ‘कविता कोश’ अथवा ‘Rekhta’ से लेता हूँ|)
आज के लिए इतना ही,
नमस्कार|
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