आज एक बार फिर मैं अपने प्रिय गीतकार और कुशल मंच संचालक श्री सोम ठाकुर जी का एक गीत शेयर कर रहा हूँ| सोम जी की कुछ रचनाएं मैंने पहले भी शेयर की हैं|
लीजिए आज प्रस्तुत है श्री सोम ठाकुर जी का यह गीत, जिसमें ऋतुओं के संधि काल का विशेष वर्णन किया गया है –

है ऋतुओं की संधि
दिशायें हुई सयानी रे|
दुबली –पतली धार
बही नदिया के कूलो में
बड़े हो गये शूल
शीश तक चढ़े बबूलों में
क्या जागा संकोच
जम गया बहता पानी रे|
कहे ना जाएं दर्द
हुआ कुछ ऐसा अंधेरों को
चंपक – अंजुरी गहे
मनौती गूँथे गज़रों को
है तन –मन की बात
सभी जानी -अंजानी रे
थके -थके से दिखे
गगन चढ़ते सूरज राजा
कैसे बिरहा बोल
सुनाए बसवट का बाजा
पीली -पीली धूप
हुई है दिन की रानी रे
है ऋतुओं कि संधि
दिशायें हुई सयानी रे|
(आभार- एक बात मैं और बताना चाहूँगा कि अपनी ब्लॉग पोस्ट्स में मैं जो कविताएं, ग़ज़लें, शेर आदि शेयर करता हूँ उनको मैं सामान्यतः ऑनलाइन उपलब्ध ‘कविता कोश’ अथवा ‘Rekhta’ से लेता हूँ|)
आज के लिए इतना ही,
नमस्कार|
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