
इन्हीं गुल-रंग दरीचों से सहर झाँकेगी,
क्यूँ न खिलते हुए ज़ख़्मों को दुआ दी जाए|
जाँ निसार अख़्तर
A sky full of cotton beads like clouds
इन्हीं गुल-रंग दरीचों से सहर झाँकेगी,
क्यूँ न खिलते हुए ज़ख़्मों को दुआ दी जाए|
जाँ निसार अख़्तर
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