आज एक बार फिर मैं हिन्दी गीत विधा के अमिट हस्ताक्षर, गीतों के राजकुंवर कहलाने वाले और कवि सम्मेलनों में श्रोताओं को झूमने पर मजबूर कर देने वाले स्वर्गीय गोपाल दास नीरज जी का एक गीत शेयर कर रहा हूँ| नीरज जी की बहुत सी रचनाएं मैंने पहले भी शेयर की हैं तथा हिन्दी फिल्मों को भी उन्होंने बहुत से अमर गीत दिए हैं|
लीजिए आज प्रस्तुत है स्वर्गीय गोपाल दास नीरज जी का यह गीत–

रूप की इस काँपती लौ के तले
यह हमारा प्यार कितने दिन चलेगा ?
नील-सर में नींद की नीली लहर,
खोजती है भोर का तट रात भर,
किन्तु आता प्रात जब गाती ऊषा,
बूँद बन कर हर लहर जाती बिखर,
प्राप्ति ही जब मृत्यु है अस्तित्व की,
यह हृदय-व्यापार कितने दिन चलेगा ?
रूप की इस काँपती लौ के तले
यह हमारा प्यार कितने दिन चलेगा ?
‘ताज’ यमुना से सदा कहता अभय-
‘काल पर मैं प्रेम-यौवन की विजय’
बोलती यमुना-‘अरे तू क्षुद्र क्या-
एक मेरी बूँद में डूबा प्रणय’
जी रही जब एक जल-कण पर तृषा,
तृप्ति का आधार कितने दिन चलेगा ?
रूप की इस काँपती लौ के तले
यह हमारा प्यार कितने दिन चलेगा ?
स्वर्ग को भू की चुनौती सा अमर,
है खड़ा जो वह हिमालय का शिखर,
एक दिन हो भूविलुंठित गल-पिघल,
जल उठेगा बन मरुस्थल अग्नि-सर,
थिर न जब सत्ता पहाड़ों की यहाँ,
अश्रु का श्रृंगार कितने दिन चलेगा ?
रूप की इस काँपती लौ के तले
यह हमारा प्यार कितने दिन चलेगा ?
गूँजते थे फूल के स्वर कल जहाँ,
तैरते थे रूप के बादल जहाँ,
अब गरजती रात सुरसा-सी खड़ी,
घन-प्रभंजन की अनल-हलचल वहाँ,
काल की जिस बाढ़ में डूबी प्रकृति,
श्वांस का पतवार कितने दिन चलेगा ?
रूप की इस काँपती लौ के तले
यह हमारा प्यार कितने दिन चलेगा ?
विश्व भर में जो सुबह लाती किरण,
साँझ देती है वही तम को शरण,
ज्योति सत्य, असत्य तम फिर भी सदा,
है किया करता दिवस निशि को वरण,
सत्य भी जब थिर नहीं निज रूप में,
स्वप्न का संसार कितने दिन चलेगा ?
रूप की इस काँपती लौ के तले
यह हमारा प्यार कितने दिन चलेगा ?
(आभार- एक बात मैं और बताना चाहूँगा कि अपनी ब्लॉग पोस्ट्स में मैं जो कविताएं, ग़ज़लें, शेर आदि शेयर करता हूँ उनको मैं सामान्यतः ऑनलाइन उपलब्ध ‘कविता कोश’ अथवा ‘Rekhta’ से लेता हूँ|)
आज के लिए इतना ही,
नमस्कार|
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