दूर से देखता हूँ– रवींद्रनाथ ठाकुर

आज फिर से पुरानी ब्लॉग पोस्ट को दोहराने का दिन है, लीजिए प्रस्तुत है यह पोस्ट|
आज मैं फिर से भारत के नोबल पुरस्कार विजेता कवि गुरुदेव रवींद्र नाथ ठाकुर की एक और कविता का अनुवाद प्रस्तुत कर रहा हूँ। यह उनकी अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित जिस कविता का भावानुवाद है, उसे अनुवाद के बाद प्रस्तुत किया गया है। मैं अनुवाद के लिए अंग्रेजी में मूल कविताएं सामान्यतः ऑनलाइन उपलब्ध काव्य संकलन- ‘PoemHunter.com’ से लेता हूँ।

लीजिए पहले प्रस्तुत है मेरे द्वारा किया गया उनकी कविता ‘From Afar’ का भावानुवाद-



गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर की कविता


दूर से देखता हूँ


‘मैं’ जो बह रहा है, समय की लहरों के साथ-साथ,
दूर से मैं उसे देखता हूँ।
धूल के साथ और जल के साथ,
फल के साथ और फूल के साथ,
सबके साथ, वह आगे की तरफ दौड़ रहा है।
हमेशा सतह पर रहता है वह,
लहरों द्वारा उछाला जाता और नाचता हुआ, धुन पर-
खुशियों की और दुख की।
मामूली सी क्षति से भी संकट में आ जाता है वह,
जरा सी चोट से जख्मी हो जाता–
दूर से देखता हूँ मैं उसको।
वह ‘मैं’, मेरा वास्तविक स्वरूप नहीं है;
मैं अभी भी अपने भीतर हूँ,
मैं मृत्यु की धारा मैं नहीं तैरता हूँ।
मैं मुक्त हूँ, मैं कामनाओं से रहित हूँ,
मैं शांति हूँ, मैं प्रकाशवान हूँ–
उसको मैं देखता हूँ दूर से।

-रवींद्रनाथ ठाकुर



और अब वह अंग्रेजी कविता, जिसके आधार मैं भावानुवाद प्रस्तुत कर रहा हूँ-

From Afar


The ‘I’ that floats along the wave of time,
From a distance I watch him.
With the dust and the water,
With the fruit and the flower,
With the All he is rushing forward.
He is always on the surface,
Tossed by the waves and dancing to the rhythm
Of joy and suffering.
The least loss makes him suffer,
The least wound hurts him–
Him I see from afar.
That ‘I’ is not my real self;
I am still within myself,
I do not float in the stream of death.
I am free, I am desireless,
I am peace, I am illumined–
Him I see from afar.

-Rabindranath Tagore


नमस्कार।


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