आज एक बार फिर से मैं हिन्दी के एक अनूठे रचनाकार स्वर्गीय भवानीप्रसाद मिश्र जी की एक रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ| बातचीत के सहज लहजे में गहरी बात कह देना भवानी दादा की विशेषता रही है| उनकी बहुत सी रचनाएं मैंने पहले भी शेयर की हैं|
लीजिए आज प्रस्तुत है स्वर्गीय भवानीप्रसाद मिश्र जी की यह कविता–

हम रात देर तक
बात करते रहे
जैसे दोस्त
बहुत दिनों के बाद
मिलने पर करते हैं
और झरते हैं
जैसे उनके आस पास
उनके पुराने
गाँव के स्वर
और स्पर्श
और गंध
और अंधियारे
फिर बैठे रहे
देर तक चुप
और चुप्पी में
कितने पास आए
कितने सुख
कितने दुख
कितने उल्लास आए
और लहराए
हम दोनों के बीच
चुपचाप !
(आभार- एक बात मैं और बताना चाहूँगा कि अपनी ब्लॉग पोस्ट्स में मैं जो कविताएं, ग़ज़लें, शेर आदि शेयर करता हूँ उनको मैं सामान्यतः ऑनलाइन उपलब्ध ‘कविता कोश’ अथवा ‘Rekhta’ से लेता हूँ|)
आज के लिए इतना ही,
नमस्कार|
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