स्वर्गीय रमेश रंजक जी अत्यंत समर्थ नवगीतकार थे जिन्होंने कुछ कालजयी नवगीत लिखे हैं| मैंने पहले भी रंजक जी की कुछ रचनाएं शेयर की हैं|
लीजिए आज प्रस्तुत है स्वर्गीय रमेश रंजक जी का एक और नवगीत –

गीत गुणनफल के
सम्बोधन कल के
डूब गए धार में फिसल के
मछली थी बाँह की प्रिया
क्यों मन को तामसी किया
सपनों के पंख सीपिया
रह गए कगार पर मचल के
नीर में छपाक-सी हुई
पीर खुल गई कसी हुई
ज़िन्दगी मज़ाक-सी हुई
रंग उड़े काग़ज़ी कमल के
खेल कर क्षणिक पराग से
उम्र भर जले चिराग-से
भीतरी अदृश्य आग के
और घने हो गए धुँधलके
(आभार- एक बात मैं और बताना चाहूँगा कि अपनी ब्लॉग पोस्ट्स में मैं जो कविताएं, ग़ज़लें, शेर आदि शेयर करता हूँ उनको मैं सामान्यतः ऑनलाइन उपलब्ध ‘कविता कोश’ अथवा ‘Rekhta’ से लेता हूँ|)
आज के लिए इतना ही,
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