इस क़दर हमने सुकूँ पाया न था!

उफ़ ये सन्नाटा कि आहट तक न हो जिसमें मुख़िल,
ज़िंदगी में इस क़दर हमने सुकूँ पाया न था|

क़तील शिफ़ाई

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